________________ परिषद् के तीन प्रकार] [23 (1) जिस परिषद् में तत्त्वजिज्ञासु, गुणज्ञ, बुद्धिमान्, सम्यग्दृष्टि, विवेकवान्, विनीत, शांत, सुशिक्षित, आस्थावान्, आत्मान्वेषी आदि गुणों से सम्पन्न श्रोता हों वह विज्ञपरिषद् कहलाती है / विज्ञपरिषद् ही सर्वोत्तम परिषद् है / (2) जो श्रोता पशु-पक्षियों के अबोध बच्चों की भांति सरलहदय तथा मत-मतान्तरों की कलुषित भावनाओं से रहित होते हैं, उन्हें आसानी से सन्मार्गगामी, संयमी, विद्वान्, एवं सद्गुणसम्पन्न बनाया जा सकता है, क्योंकि उनमें कुसंस्कार नहीं होते। ऐसे सरलहृदय श्रोताओं की परिषद् को अविज्ञ परिषद् कहते हैं / (3) जो अभिमानी, अविनीत, दुराग्रही, और वस्तुतः मूढ हों फिर भी अपने आपको पंडित समझते हों, लोगों से अपने पांडित्य की झूठी प्रशंसा सुनकर वायु से पूरित मशक की तरह फूल उठते हों, ऐसे श्रोताओं के समूह को दुर्विदग्धा परिषद् समझना चाहिये। उपयुक्त परिषदों में विज्ञपरिषद् अनुयोग के लिए सर्वथा पात्र है। दूसरी भी पात्र है किन्तु तीसरी दुर्विदग्धा परिषद् ज्ञान देने के लिए अयोग्य है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए शास्त्रकार ने श्रोताओं की परिषद् का पहले वर्णन किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org