________________ श्रोताओं के विविध प्रकार [21 हैं, वे मोक्ष के अनन्त सुखों के अधिकारी होते हैं। जैसे श्रीकृष्ण का विश्वासी सेवक पारितोषिक पाता है और दूसरा निकाला जाता है / / (14) अहीर-दम्पती-एक अहीरदम्पती बैलगाड़ी में घृत के घड़े भरकर शहर में बेचने के लिए धीमण्डी में पाया / वह गाड़ी से घड़े उतारने लगा और अहीरनी नीचे खड़ी होकर लेने लगी। दोनों में से किसी की असावधानी के कारण घड़ा हाथ से छूट गया और घी जमीन में मिट्टी से लिप्त हो गया। इस पर दोनों झगड़ने लगे। वाद-विवाद बढ़ता गया / बहुत सारा घी अग्राह्य हो गया, कुछ जानवर चट कर गये / जो कुछ बचा उसे बेचने में काफी विलंब हो गया / अत: सायंकाल वे दःखी और परेशान होकर घर लौटे / किन्तु मार्ग में चोरों ने लूट लिया, मुश्किल से जान बचा कर घर पहुंचे। इसके विपरीत दूसरा अहीरदम्पती घृत के घड़े गाड़ी में भरकर शहर में बेचने हेतु आये। असावधानी से घड़ा हाथ से छूट गया, किन्तु दोनों अपनी-अपनी असावधानी स्वीकार कर, गिरे हुए घी को अविलम्ब समेटने लगे। घी बेच कर सूर्यास्त होने से पहले-पहले ही वे सकुशल घर पहुंच गये। उपर्युक्त दोनों उदाहरण अयोग्य और योग्य श्रोताओं पर घटित किये गये हैं / एक श्रोता आचार्य के कथन पर क्लेश करके श्रु तज्ञान रूप घृत को खो बैठता है, वह श्रु तज्ञान का अधिकारी नहीं हो सकता। दूसरा, आचार्य द्वारा ज्ञानदान प्राप्त करते समय भूल हो जाने पर अविलम्ब क्षमायाचना कर लेता है तथा उन्हें संतुष्ट करके पुनः सूत्रार्थ ग्रहण करता है। वही श्रु तज्ञान का अधिकारी कहलाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org