SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गणधरावलि [11 २१–विमलमणंत य धम्म संति कुथुअरं च मल्लि च / मुणिसुन्वय नमि नेमि पासं तह बद्धमाणं च / / २०-२१-ऋषभ, अजित, सम्भव, अभिनन्दन, सुमति, पश्चप्रभ, (सुप्रभ) सुपार्श्व, चन्द्रप्रभ (शशो), सुविधि (पुष्पदन्त), शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनन्त, धर्म, शांति, कुथु, अर, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, नेमि (अरिष्टनेमि), पार्श्व और वर्द्धमान–श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन करता हूँ। विवेचन-प्रस्तुत दो गाथानों में वर्तमान अवसर्पिणी काल के चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति की गई है। पांच भरत तथा पांच ऐरावत-इन दस ही क्षेत्रों में अनादि से काल-चक्र का अवसर्पण और उत्सर्पण होता चला आ रहा है / एक काल-चक्र के बारह आरे होते हैं / इनमें छह पारे अवसर्पिणी के और छह उत्सर्पिणी के होते हैं। प्रत्येक अवसर्पिणी तथा उत्सपिणी में चौबीस-चौबीस तीर्थकर, बारह चक्रवत्ती, नौ वलदेव, नौ वासुदेव तथा नौ प्रति-वासुदेव इस प्रकार तिरेसठ शलाका-पुरुष होते हैं। गणधरावलि २२–पढमित्थ इंदभूई, बीए पुण होइ अग्गिभूइत्ति / तइए य वाउभूई, तो वियत्ते सुहम्मे य॥ २३–मंडिय-मोरियपुत्ते, अपिए चेव अयलभाया य / मेयज्जे य पहासे, गणहरा हुन्ति वीरस्स / / २२-२३–श्रमण भगवान् महावीर के गण-व्यवस्थापक ग्यारह गणधर हुए हैं, जो उनके प्रधान शिष्य थे। उनकी पवित्र नामावलि इस प्रकार है-(१) इन्द्रभूति (2) अग्निभूति (3) वायुभूति ये तीनों सहोदर भ्राता और गौतम गोत्र के थे। (4) व्यक्त (5) सुधर्मा (6) मण्डितपुत्र (7) मौर्यपुत्र (8) अकम्पित (9) अचलभ्राता (10) मेतार्य (11) प्रभास / विवेचन—ये ग्यारह गणधर भगवान् महावीर के प्रमुख शिष्य थे। भगवान् को वैशाख शुक्ला दशमी को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी। उस समय मध्यपापा नगरी में सोमिल नामक ब्राह्मण ने अपने यज्ञ-समारोह में इन ग्यारह ही महामहोपाध्यायों को उनके शिष्यों के साथ आमन्त्रित किया था। उसी नगर के बाहर महासेन उद्यान में भगवान् महावीर का पदार्पण हुा / देवकृत समवसरण की ओर उमड़ती हुई जनता को देखकर सर्वप्रथम महामहोपाध्याय इन्द्रभूति और उनके पश्चात् अन्य सभी महामहोपाध्याय अपने अपने शिष्यों सहित अहंकार और क्रोधावेश में बारी-बारी से प्रतिद्वन्द्वी के रूप में भगवान् के समवसरण में पहुँचे। सभी के मन में जो सन्देह रहा हुआ था, उनके विना कहे हो उसे प्रकट करके सर्वज्ञ देव प्रभु महावीर ने उसका समाधान दिया। इससे प्रभावित होकर सभी ने भगवान् का शिष्यत्व स्वीकार किया। ये गणों को स्थापना करने वाले गणधर कहलाए / गण-गच्छ का कार्य-भार गणधरों के जिम्मे होता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy