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________________ जयइ सुग्राणं पभवो, तित्थयराणं अपच्छिमो जयइ / जयइ गुरू लोगाण, जयइ महप्पा महावीरो / / मंगल के प्रसंग से प्रस्तुत सुत्र में प्राचार्य ने जो स्थविरावली-गुरु-शिष्य-परम्परा दी है, वह कल्पसूत्रीय स्थविरावली से भिन्न है। नन्दीसूत्र में भगवान महावीर के बाद की स्थविरावली इस प्रकार है१. सुधर्म 17. धर्म 2. जम्बू 18. भद्रगुप्त 3. प्रभव 19. वज्र 4. शय्यम्भव 20. रक्षित 5. यशोभद्र 1. नन्दिल (आनन्दिल) 6. सम्भूतविजय 22. नागहस्ती 7. भद्रबाहु 23. रेवती नक्षत्र 8. स्थूलभद्र 24. ब्रह्मदीपकसिंह 9. महागिरि 25. स्कन्दिलाचार्य 10. सुहस्ती 26. हिमवन्त 11. बलिस्सह 27. नागार्जुन 12. स्वाति 28. श्री गोविन्द 13. श्यामार्य 29. भूतदिन्न 14. शाण्डिल्य 30. लौहित्य 15. समुद्र 31. दूष्यगणी 16. मंगु श्रोता और सभा: ___ मंगलाचरण के रूप में अर्हन् आदि की स्तुति करने के बाद सूत्रकार ने सूत्र का अर्थ ग्रहण करने की योग्यता रखने वाले श्रोता का चौदह दृष्टान्तों से वर्णन किया है। वे दृष्टान्त ये हैं-१. शैल और धन, 2. कुटक अर्थात् घड़ा, 3. चालनी, 4. परिपूर्ण, 5. हंस, 6. महिष, 7. मेष, 8. मशक, 9. जलौका, 10. विडाली, 11. जाहक, 12. गौ, 13. भेरी, 14. आभीरी / एतद्विषयक गाथा इस प्रकार है। सेल-घण-कुडग-चालिणि, परिपुण्णग-हंस महिस-मेसे य / मसग-जलूग-बिराली, जागह-गो भेरी आभीरी / / इन दृष्टान्तों का टीकाकारों ने विशेष स्पष्टीकरण किया है। श्रोताओं के समूह को सभा कहते हैं। सभा कितने प्रकार की होती है ? इस प्रश्न का विचार करते हए सूत्रकार कहते हैं कि सभा संक्षेप में तीन प्रकार की होती है ।—ज्ञायिका, अज्ञायिका और दुर्विदग्धा / जैसे हंस पानी को छोड़कर दूध पी जाता है उसी प्रकार गुणसम्पन्न पुरुष दोषों को छोड़कर गुणों को ग्रहण कर लेते हैं / इस प्रकार के पुरुषों की सभा ज्ञायिका-परिषद् कहलाती है। जो श्रोता, मृग, सिंह और कुक्कुट के बच्चों के समान प्रकृति से भोले होते हैं तथा असंस्थापित रत्नों के समान किसी भी रूप में स्थापित किये जा सकते हैं-किसी भी मार्ग में लगाये जा सकते हैं वे अज्ञायिक हैं। इस प्रकार के श्रोताओं की सभा प्रज्ञायिका कहलाती है। जिस प्रकार [27] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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