________________ 164] [ नन्दीसूत्र अहवा जस्स जत्तिमा सीसा उप्पत्तिमाए, वेणइमाए, कम्मियाए, पारिणामिश्राए चउन्विहाए बुद्धीए उववेत्रा, तस्स तत्तिआई पइण्णगसहस्साई। पत्तेप्रबुद्धा वि तत्तिमा चेव, से तं कालिगं / से त्तं प्रावस्सयवइरित्तं / से तं प्रणंगपविट्ठ। / सूत्र० 44 // ८१--कालिक-श्रु त कितने प्रकार का है ? ___ कालिक-श्रुत अनेक प्रकार का प्रतिपादित किया गया है, जैसे-(१) उत्तराध्ययन सूत्र (2) दशाशु तस्कंध (3) कल्प-बृहत्कल्प (4) व्यवहार (5) निशीथ (6) महानिशीथ (7) ऋषिभाषित (8) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति (9) द्वीपसागरप्रज्ञप्ति (10) चन्द्रप्रज्ञप्ति (11) क्षुद्रिका. विमानविभक्ति (12) महल्लिकाविमानप्रविभक्ति (13) अङ्गचूलिका (14) वर्गचूलिका (15) विवाहचूलिका (16) अरुणोपपात (17) वरुणोपपात (18) गरुडोपपात (16) धरणोपपात (20) वैश्रमणोपपात (21) वेलन्धरोपपात (22) देवेन्द्रोपपात (23) उत्थानश्रु त (24) समुत्थानश्रुत (25) नागपरिज्ञापनिका (26) निरयावलिका (27) कल्पिका (28) कल्पावतंसिका (29) पुष्पिता (30) पुष्पचूलिका और (31) वृष्णिदशा (अन्धकवृष्णिदशा) आदि / चौरासी हजार प्रकीर्णक अर्हत् भगवान् श्रीऋषभदेव स्वामी आदि तीर्थंकर के हैं तथा संख्यात सहस्र प्रकीर्णक मध्यम तीर्थंकरों के हैं। चौदह हजार प्रकीर्णक भगवान् महावीर स्वामी के हैं। इनके अतिरिक्त जिस तीर्थंकर के जितने शिष्य औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कर्मजा और पारिणामिकी बुद्धि से युक्त हैं, उनके उतने ही हजार प्रकीर्णक होते हैं। प्रत्येकबुद्ध भी उतने ही होते हैं। यह कालिकाश्रु त है। इस प्रकार आवश्यक-व्यतिरिक्त श्रुत का वर्णन हुआ और अनङ्ग-प्रविष्ट श्र त का स्वरूप भी सम्पूर्ण हुआ। विवेचन—प्रस्तुत सूत्र में कालिक सूत्रों के नामों का उल्लेख किया गया है। इनके नामों से ही प्राय: इनके विषय का बोध हो जाता है तथापि कतिपय सूत्रों का विवरण इस प्रकार है उत्तराध्ययनसूत्र-प्रसिद्ध है। इसमें छत्तीस अध्ययन हैं, इसमें सैद्धान्तिक, नैतिक, सुभाषितात्मक तथा कथात्मक वर्णन है। प्रत्येक अध्ययन अति महत्त्वपूर्ण है। निशीथ--इसमें पापों के प्रायश्चित्त का विधान है / जिस प्रकार रात्रि के अन्धकार को प्रकाश दूर करता है, उसी प्रकार अतिचार (पाप) रूपी अन्धेरे को प्रायश्चित्तरूप प्रकाश मिटाता है / अङ्गलिका—यह आचारांग आदि अंगों की चूलिका है। चलिका का अर्थ होता है-उक्त या अनुक्त अर्थों का संग्रह / यह सूत्र अंगों से संबंधित है / आचारांग सूत्र की पाँच चूलिकाएँ हैं / एक चलिका दृष्टिवादान्तर्गत भी है। वर्गचूलिका-जैसे अन्तकृत् सूत्र के आठ वर्ग हैं, उनकी चूलिका तथा अनुत्तरौपपातिक दशा के तीन वर्ग हैं, उनकी चूलिका। . अनुत्तरौपपातिकदशा-इसमें तीन वर्ग हैं / इसमें अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले उत्तम पुरुषों का वर्णन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org