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________________ 162] [नन्दीसूत्र (3) चुल्लकप्पसुअं (4) महाकप्पसुअं (5) उववाइयं (6) रायपसेणियं (7) जीवाभिगमो (8) पन्नवणा (8) महापन्नवणा (10) पमायप्पमायं (11) नंदी (12) अणुप्रोगदाराई (13) देविदत्थश्रो (14) तंदुलवेप्रालि (15) चंदाविज्झयं (16) सूरपण्णती (17) पोरिसिमंडलं (18) मंडलपवेसो (16) विज्जाचरणविणिच्छरो (20) गणिविज्जा (21) झाणविभत्ती (22) मरणविभत्ती (23) प्रायविसोही (24) बोयरागसुधे (25) संलेहणासुअं (26) विहारकप्पो (27) चरणविही (28) पाउरपच्चरखाणं (26) महापच्चवखाणं, एवमाइ। , से त्तं उक्कालि। ८०-आवश्यक-व्यतिरिक्त श्रुत कितने प्रकार का है ? आवश्यक-व्यतिरिक्त श्रु त दो प्रकार का है-(१) कालिक-जिस श्रुत का रात्रि व दिन के प्रथम और अन्तिम प्रहर में स्वाध्याय किया जाता है। (2) उत्कालिक जो कालिक से भिन्न काल में भी पढ़ा जाता है। उत्कालिक श्रृत कितने प्रकार का है ? वह अनेक प्रकार का है, जैसे-(१) दशवकालिक (2) कल्पाकल्प (3) चुल्लकल्पश्र त (4) महाकल्पच त (5) औषपातिक (6) राजप्रश्नीय (7) जीवाभिगम (8) प्रज्ञापना (9) महाप्रज्ञापना (10) प्रमादाप्रमाद (11) नन्दो (12) अनुयोगद्वार (13) देवेन्द्रस्तव (14) तन्दुलवैचारिक (15) चन्द्रविद्या (16) सूर्यप्रज्ञप्ति (17) पौरुषीमंडल (18) मण्डलप्रदेश (19) विद्याचरणविनिश्चय (20) गणिविद्या (21) ध्यानविभक्ति (22) मरणविभक्ति (23) अात्मविशुद्धि (24) वीतरागथत (25) संलेखनाथु त (26) विहारकल्प (27) चरणविधि (28) आतुरप्रत्याख्यान और (26) महाप्रत्याख्यान इत्यादि / यह उत्कालिक श्रत का वर्णन सम्पूर्ण हुआ। विवेचन---यहाँ सूत्रकार ने कालिक और उत्कालिक सूत्रों के नामों का उल्लेख करते हुए बताया है कि जो नियत काल में अर्थात् दिन और रात्रि के प्रथम व अंतिम प्रहर में पढ़े जाते हैं, वे कालिक कहलाते हैं, और जो अस्वाध्याय के समय के अतिरिक्त भी रात्रि और दिन में पढ़े जाते हैं वे उत्कालिक कहलाते हैं। उत्कालिक-कालिक श्रु त का संक्षिप्त परिचय दशवकालिक और कल्पाकल्प-ये दो सूत्र स्थविर प्रादि कल्पों का प्रतिपादन करते हैं। महाप्रज्ञापना---इसमें प्रज्ञापना सूत्र की अपेक्षा जीवादि पदार्थों का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है। प्रमादाप्रमाद-इस सूत्र में मद्य, विषय, कषाय, निद्रा तथा विकथा आदि प्रमादों का वर्णन है। अपने कर्त्तव्य एवं अनुष्ठानादि में सतर्क रहना अप्रमाद है जो मोक्ष का मार्ग है और इसके विपरीत प्रमाद संसार-भ्रमण कराने वाला है / सूर्यप्रज्ञप्ति—इसमें सूर्य का विस्तृत स्वरूप वर्णित है। पौरुषीमंडल-इस सूत्र में मुहूर्त, प्रहर आदि कालमान का वर्णन है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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