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________________ 140] [नन्दीसूत्र तक, कोई ईहा तक और कोई अवाय तक ही रह जाता है। यह नियम नहीं कि प्रत्येक अवग्रह धारणा की कोटि तक पहुँचे ही। सूत्रकार ने इस प्रकार प्रतिबोधक और मल्लक के दृष्टान्तों से व्यंजनावग्रह का वर्णन करते हुए प्रसंगवश मतिज्ञान के अट्ठाईस भेदों का भी विस्तृत वर्णन कर दिया है। वैसे मतिज्ञान के तीन सौ छत्तीस भेद भी होते हैं। प्रस्तुत सूत्र की वृत्ति में बताया गया है कि मतिज्ञान के अवग्रह आदि अट्ठाईस भेद होते हैं। प्रत्येक भेद को बारह भेदों में गुणित करने से तीन सौ छत्तीस भेद हो जाते हैं / पाँच इन्द्रियाँ और मन, इन छह निमित्तों से होने वाले मतिज्ञान के अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा रूप से चौबीस भेद होते हैं। वे सब विषय की विविधता और क्षयोपशम से बारह-बारह प्रकार के होते हैं। इन्हें निम्न प्रकार से सरलता पूर्वक समझा जा सकता है :(1) बहुग्राही (6) अवग्रह (6) ईहा (6) अवाय (6) धारणा (2) अल्पग्राही (3) बहुविधग्राही (4) एकविधग्राही (5) क्षिप्रग्राही (6) अक्षिाग्राही (7) अनिश्रितग्राही (8) निश्रितग्राही (8) असंदिग्धग्राही (10) संदिग्धग्राही (11) ध्र वनाही (12) अध्र वग्राही (1) बहु-इसका अर्थ अनेक है, यह संख्या और परिमाण दोनों की अपेक्षा से हो सकता है / वस्तु की अनेक पर्यायों को तथा बहुत परिमाण वाले द्रव्य को जानना या किसी बहुत बड़े परिमाण वाले विषय को जानना। (2) अल्प-किसी एक ही विषय को, या एक ही पर्याय को स्वल्पमात्रा में जानना / (3) बहुविध-किसी एक ही द्रव्य को या एक ही वस्तु को या एक ही विषय को बहुत प्रकार से जानना / जैसे-वस्तु का आकार-प्रकार, रंग-रूप, लंबाई-चौड़ाई, मोटाई अथवा उसकी अवधि इत्यादि अनेक प्रकार से जानना ! (4) अल्पविध-किसी भी वस्तु या पर्याय को, जाति या संख्या आदि को अल्प प्रकार से जानना / अधिक भेदों सहित न जानना / (5) क्षिप्र-किसी वक्ता या लेखक के भावों को शीघ्र ही किसी भी इन्द्रिय या मन के द्वारा जान लेना / स्पर्शेन्द्रिय के द्वारा अन्धकार में भी किसी व्यक्ति या वस्तु को पहचान लेना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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