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________________ 132] [नन्दीसूत्र ' अर्थात्-क्षयोपशमविशेष से स्पष्टतर-सद्भतार्थ के अभिमुख, व्यतिरेक धर्म को त्याग कर और अन्वय धर्म को ग्रहण करके स्पष्टतया विचार करना विमर्श कहलाता है। (3) अवाय (५६)-से कि तं प्रवाए ? अवाए छविहे पण्णत्ते / तंजहा--(१) सोइंदियप्रवाए (2) चविखंदियप्रवाए (3) घाणिदियप्रवाए (4) जिभिंदियवाए (5) फासिदिय प्रवाए (6) नोइंदियग्रवाए / तस्स णं इमे एगढिया नाणाघोसा, नाणावंजणा पंच नामधिज्जा भवंति, तं जहा-(१) प्राउट्टणया (2) पच्चाउट्टणया (3) प्रवाए (4) बुद्धी (5) विण्णाणे / से तं श्रवाए / ५६–अवाय मतिज्ञान कितने प्रकार का है ? अवाय छह प्रकार का है, जैसे---(१) श्रोत्रेन्द्रिय-अवाय (2) चक्षुरिन्द्रिय-प्रवाय (3) घ्राणेन्द्रिय-अवाय (4) रसनेन्द्रिय-अवाय (5) स्पर्शेन्द्रिय-अवाय (6) नोइन्द्रिय-अवाय / अवाय के एकार्थक, नानाघोष और नानाव्यंजन वाले पाँच नाम इस प्रकार हैं(१) आवर्त्तनता (2) प्रत्यावर्त्तनता (3) अवाय:(४) बुद्धि (5) विज्ञान / यह अवाय का वर्णन हुआ / विवेचन-इस सूत्र में अवाय और उसके भेद तथा पर्यायान्तर बताए गए हैं। ईहा के पश्चात् विशिष्ट बोध कराने वाला ज्ञान अवाय है / इसके पाँच नाम निम्न प्रकार हैं (1) पावर्त्तनता—ईहा के पश्चात् निश्चय के सन्मुख बोधरूप परिणाम से पदार्थों के विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करने के सन्मुख ज्ञान को प्रावर्तनता कहते हैं / (2) प्रत्यावर्त्तनता--आवर्त्तनता के पश्चात्-अपाय-निश्चय के सन्निकट पहुँचा हुअा उपयोग प्रत्यावर्त्तनता कहलाता है। (3) अवाय-पदार्थों के पूर्ण निश्चय को अवाय कहते हैं। (4) बुद्धि-निश्चित ज्ञान को क्षयोपशम-विशेष से स्पष्टतर जानना / (5) विज्ञान-विशिष्टतर निश्चय किये हुए ज्ञान को, जो तीन धारणा का कारण हो उसे विज्ञान कहते हैं / बुद्धि और विज्ञान से ही पदार्थों का सम्यक्तया निश्चय होता है। (4) धारणा ६०--से कि तं धारणा? ___ धारणा छव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-(१) सोइंदिय-धारणा (2) चविखदिय-धारणा (3) घाणिदिय-धारणा (4) जिभिदिय-धारणा (5) फासिदिय-धारणा (6) नोइंदिय-धारणा। तोसे गं इमे एगढिया नाणाघोसा, नाणावंजणा, पंच नामधिज्जा भवंति, तं जहा(१) धारणा (2) साधारणा (3) ठवणा (4) पइट्ठा (5) कोठे / से तं धारणा।। ६०–धारणा कितने प्रकार की है ? धारणा छह प्रकार की है / यथा--(१) श्रोत्रेन्द्रिय-धारणा (2) चक्षुरिन्द्रिय-धारणा (3) घ्राणेन्द्रिय-धारणा (4) रसनेन्द्रिय-धारणा (5) स्पर्शेन्द्रिय-धारणा (6) नोइन्द्रिय-धारणा / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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