________________ मतिज्ञान] [125 करने के लिये चल दिया। राजा चेड़ा न भी कई अन्य गण-राजाओं को साथ लेकर कुणिक का सामना करने के लिये यद्ध के मैदान की ओर प्रयाण किया। दोनों पक्षों में भीषण युद्ध हुआ और लाखों व्यक्ति काल-कवलित हो गये। इस युद्ध में राजा चेड़ा पराजित हुआ और वह पीछे हटकर विशाला नगरी में आ गया / नगरी के चारों ओर विशाल परकोटा था, जिसमें रहे हुए सब द्वार बंद करवा दिए गए। कुणिक ने परकोटे को जगह-जगह से तोड़ने की कोशिश की पर सफलता नहीं मिली। इस बीच आकाशवाणी हुई—“अगर कूलबालक साधु मागधिका वेश्या के साथ रमण करे तो कुणिक नगरी का कोट गिराकर उस पर अपना अधिकार कर सकता है।" कुणिक आकाशवाणी सुनकर चकित हया पर उस पर विश्वास करते हुए उसने उसी समय मागधिका गणिका को लाने के लिए राज-सेवकों को दौड़ा दिया / मागधिका आ गई और राजा की आज्ञा शिरोधार्य करके वह कूलबालक मुनि को लाने चल दी। ___ कूलबालक एक महाक्रोधी और दुष्ट-बुद्धि साधु था। जब वह अपने गुरु के साथ रहता था तो उनकी हितकारी शिक्षा का भी गलत अर्थ निकालकर उनपर क्रुद्ध होता रहता था। एक बार वह अपने गुरु के साथ किसी पहाड़ी मार्ग पर चल रहा था कि किसी बात पर क्रोध आते ही उसने गुरुजी को मार डालने के लिए एक बड़ा भारी पत्थर पीछे से उनकी ओर लुढ़का दिया। अपनी ओर पत्थर आता देखकर आचार्य तो एक अोर होकर उससे बच गए किन्तु शिष्य के ऐसे घणित और असहनीय कुकृत्य पर कुपित होकर उन्होंने कहा-"दुष्ट ! किसी को मार डालने जैसा नीच कर्म भी तू कर सकता है ? जा ! तेरा पतन भी किसी स्त्री के द्वारा होगा।" कुलबालक सदैव गुरु की आज्ञा से विपरीत ही कार्य करता था। उनकी इस बात को भी झूठा साबित करने के लिए वह एक निर्जन प्रदेश में चला गया / वहाँ स्त्री तो क्या पुरुष भी नहीं रहते थे। वहीं एक नदी के किनारे ध्यानस्थ होकर वह तपस्या करता था। पाहार के लिए भी कभी वह गाँव में नहीं जाता था अपितु संयोगवश कभी कोई यात्री उधर से गुजरता तो उससे कुछ प्राप्त करके शरीर को टिकाये रहता था। एक बार नदी में बड़े जोरों से बाढ़ आई, उसके बहाव में वह पलमात्र में बह सकता था, किन्तु उसकी घोर तपस्या के कारण ही नदी का बहाव दूसरी ओर हो गया। यह आश्चर्यजनक घटना देखकर लोगों ने उसका नाम 'कूलबालक मुनि' रख दिया। इधर जब राजा कणिक ने मागधिका वेश्या को भेजा तो उसने पहले तो कलबालक के स्थान का पता लगाया और फिर स्वयं ढोंगी श्राविका बनकर नदी के समीप ही रहने लगी। अपनी सेवाभक्ति के द्वारा उसने कूलबालक को आकर्षित किया तथा आहार लेने के लिए आग्रह किया। जब वह भिक्षा लेने के लिए मागधिका के यहाँ गया तो उसने खाने की वस्तुएँ विरेचक औषधि-मिश्रित दे दी, जिनके कारण कूलबालक को अतिसार की बीमारी हो गई / बीमारी के कारण बेश्या साधु की सेवा-शुश्रूषा करने लगी। इसी दौरान वेश्या के स्पर्श से साधु का मन विचलित हो गया और वह अपने चारित्र से भ्रष्ट हुआ / साधु की यह स्थिति अपने अनुकूल जानकर वेश्या उसे कुणिक के पास ले आई। कुणिक ने कलबालक साधु से पूछा-"विशाला नगरी का यह दृढ़ और महाकाय कोट कैसे तोड़ा जा सकता है ?" कूलबालक अपने साधुत्व से भ्रष्ट तो हो ही चुका था, उसने नैमित्तिक का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org