________________ 124] [नन्दीसूत्र के कारण एक जंगल में गेंडे के रूप में उत्पन्न हया / अपने ऋर परिणामों के कारण वह जंगल के अन्य जीवों को तो मारता ही था, आने-जाने वाले मनुष्यों को भी मार डालता था। एक बार कुछ मुनि उस जंगल में से विहार करते हुए जा रहे थे। गेंडे ने ज्यों ही उन्हें देखा, क्रोधपूर्वक उन्हें मारने के लिए दौड़ा। किन्तु मुनियों के तप, तेज व अहिंसा आदि धर्म के प्रभाव से वह उन तक पहुँच नहीं पाया और अपने उद्देश्य में असफल रहा / गेंडा यह देखकर विचार में पड़ गया और अपने निस्तेज होने के कारण को खोजने लगा। धीरे-धीरे उसका क्रोध शांत हुआ और उसे ज्ञानावरणीय कर्मों के क्षयोपशम से जातिस्मरण ज्ञान हो गया। अपने पूर्वभव को जानकर उसे बड़ी ग्लानि हुई और उसी समय उसने अनशन कर लिया। आयुष्य पूरा हो जाने पर वह देवलोक में देव हुआ / अपनी पारिणमिकी बुद्धि के कारण ही गेंडे ने देवत्व प्राप्त किया / २१-स्तूप-भेदन-कुणिक और विहल्लकुमार, दोनों ही राजा श्रेणिक के पुत्र थे / श्रेणिक ने अपने जीवनकाल में ही सेचनक हाथी तथा वङ्कचूड़ हार दोनों विहल्लकुमार को दे दिये थे तथा कुणिक राजा बन गया था। विहल्लकुमार प्रतिदिन अपनी रानियों के साथ हाथी पर बैठकर जलक्रीडा के लिये गंगातट पर जाता था। हाथो रानियों को अपनी संड से उठाकर नाना प्रकार से उनका मनोरंजन करता था। विहल्लकुमार तथा उसकी रानियों की मनोरंजक क्रीडाएँ देखकर जनता भांति-भांति से उनकी सराहना करती थी तथा कहती थी कि राज्य-लक्ष्मी का सच्चा उपभोग तो विहल्लकुमार ही करता है। राजा कुणिक की रानी पद्मावती के मन में यह सब सुनकर ईर्ष्या होती थी। वह सोचती थी-महारानी मैं हूँ पर अधिक सुख-भोग विहल्लकुमार की रानियाँ करती हैं। उसने अपने पति राजा कुणिक से कहा-'यदि सेचनक हाथी और प्रसिद्ध हार मेरे पास नहीं है तो मैं रानी किस प्रकार कहला सकती हूँ ? मुझे दोनों चीजें चाहिए।" कुणिक ने पहले तो पद्मावती की बात पर ध्यान नहीं दिया किन्तु उसके बार-बार आग्रह करने पर विहल्लकुमार से हाथी और हार देने के लिये कहा / विहल्ल कुमार ने उत्तर में कहा-"अगर आप हार और हाथी लेना चाहते हैं तो मेरे हिस्से का राज्य मुझे दे दोजिए।" कुणिक इस बात के लिए तैयार नहीं हआ और उसने दोनों चीजें विहल्ल से जबर्दस्ती ले लेने का निश्चय किया। विहल्ल को इस बात का पता चला तो वह हार और हाथी लेकर रानियों के साथ अपने नाना राजा चेड़ा के पास विशाला नगरी में चला गया / राजा कुणिक को बड़ा क्रोध आया और उसने राजा चेड़ा के पास दूत द्वारा संदेश भेजा-- "राज्य की श्रेष्ठ वस्तुएँ राजा की होती हैं, अतः हार और हाथी सहित विहल्लकुमार व उसके अन्तःपुर को आप वापिस भेज दें अन्यथा युद्ध के लिए तैयार हो जाएँ।" कुणिक के संदेश के उत्तर में चेड़ा ने कहलवा दिया—“जिस प्रकार राजा श्रेणिक व चेलना रानी का पुत्र कुणिक मेरा दौहित्र है, उसी प्रकार विहल्लकुमार भी है / विहल्ल को श्रेणिक ने अपने जीवनकाल में ही ये दोनों चीजें प्रदान कर दी थीं, अतः उसी का अधिकार उस पर है। फिर भी अगर कुणिक इन दोनों को लेना चाहता है तो विहल्लकुमार को आधा राज्य दे दे / ऐसा न करने पर अगर वह युद्ध करना चाहे तो मैं भी तैयार हूँ।" राजा चेड़ा का उत्तर दूत ने कुणिक को ज्यों का त्यों कह सुनाया। सुनकर कुणिक क्रोध के मारे आपे में न रहा और अपने अन्य भाइयों के साथ विशाल सेना लेकर विशाला नगरी पर चढ़ाई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org