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________________ 118] [नन्दीसूत्र वस्तुतः सम्पूर्ण साधुओं में स्थूलिभद्र मुनि हो दुष्कर-दुष्कर क्रिया करनेवाले अद्वितीय हैं। गुरुदेव ने उनके लिए जो 'दुष्करातिदुष्कर-कारक' शब्द कहे थे वे यथार्थ हैं / यही सोचता हुआ मुनि गुरु के समीप आया और अपने पतन के लिये पश्चात्ताप करते हुए प्रायश्चित्त लिया / अपनी आलोचना करते हुए उसने पुनः पुनः स्थूलिभद्र की प्रशंसा की और कहा "वेश्या रागवती सदा तदनुगा षड़भी रसर्भोजनं / शुभ्र धाम मनोहरं वयुरहो ! नव्यो वयःसंगमः // कालोऽयं जलदाविलस्तदपि यः, कामंजिगायादरात् तं वंदे युवतिप्रबोधकुशलं, श्रीस्थूलभद्र मुनिम् / / अर्थात्-प्रेम करने वाली तथा उसमें अनुरक्त वेश्या, षट्रस भोजन, मनोहारी महल, सुन्दर शरीर, तरुणावस्था और वर्षाकाल, इन सब अनुकूलताओं के होते हुए भी जिसने कामदेव को जीत लिया, ऐसे वेश्या को प्रतिबोध देकर धर्म मार्ग पर लाने वाले मुनि स्थूलिभद्र को मैं प्रणाम करता हूँ। वास्तव में अपनी पारिणामिकी बुद्धि के कारण मंत्रिपद और उसके द्वारा प्राप्त भोग के साधन धन-वैभव को ठुकराकर आत्म-कल्याण कर लेने वाले स्थूलिभद्र प्रशंसा के पात्र हैं। (14) मासिकपुर का सुन्दरीनन्द-नासिकपुर के नन्द नामक सेठ की सुन्दरी नाम की अत्यन्त रूपवती स्त्री थी / सेठ उसमें इतना अनुरक्त था कि पल भर के लिये भी उसे अपने नेत्रों से ओझल नहीं करता था / सुन्दरी पत्नी में इतनी अनुरक्ति देखकर लोग उसे सुन्दरीनन्द ही कहा करते थे। सुन्दरीनन्द सेठ का एक छोटा भाई मुनि बन गया था। उसे जब ज्ञात हुआ कि स्त्री में अनुरक्त मेरा बड़ा भाई अपना भान भूल बैठा है तो वह उसे प्रतिबोध देने के विचार से नासिकपुर आया। जनता को मुनि के आगमन का पता चला तो वह धर्मोपदेश श्रवण करने के लिये गई किन्तु सुन्दरीनन्द वहाँ नहीं गया / प्रवचन के पश्चात् मुनि ने आहार की गवेषणा करते हुए सुन्दरीनन्द के घर में भी प्रवेश किया। अपने भाई की स्थिति देखकर मुनि के मन में विचार आया-जब तक इसे अधिक प्रलोभन नहीं मिलेगा, इसकी पत्नो-पासक्ति कम नहीं होगी। उन्होंने एक सुन्दर वानरी अपनी वैक्रियलब्धि के द्वारा बनाई और सेठ से पूछा-"क्या यह सुन्दरी जैसी है ?" सेठ ने कहा"यह सुन्दरी से आधी सुन्दर है / " मुनि ने फिर एक विद्याधरी बनाई और सेठ से पूछा- "तुम्हें कैसी लगी?" सेठ ने उत्तर दिया- 'यह सुन्दरी जैसी है।" तीसरी बार मुनि ने देवी की विकुर्वणा की और भाई से पून: वही प्रश्न किया। इस बार सेठ ने उत्तर दिया-"यह तो सुन्दरी से भी अधिक सुन्दर है।" इस पर मुनि ने कहा-"अगर तुम थोड़ा भी धर्माचार करो तो ऐसी अनेक सुन्दरियाँ तुम्हें सहज ही प्राप्त हो सकती हैं।" मुनि के इन प्रतिबोधपूर्ण वचनों को सुनने से सेठ की समझ में आ गया कि मुनि का उद्देश्य क्या है ? उसी क्षण से उसकी आसक्ति पत्नी में कम हो गई और कुछ समय पश्चात् उसने भी संयम की आराधना करके आत्म-कल्याण किया। यह सब मुनि ने अपनी पारिणामिक द्वारा संभव बनाया। १५--वज्रस्वामी-अवन्ती देश में तुम्बवन सन्निवेश था। वहाँ धनगिरि नामक एक श्रेष्ठि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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