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________________ मतिज्ञान [115 सुनाई बातों पर विश्वास न करके प्रातःकाल हमें स्वयं वहाँ चलकर आँखों से देखना चाहिये / " राजा मान गया / घर आकर शकटार ने अपने एक सेवक को आदेश दिया कि तुम रात को गंगा के किनारे छिपकर बैठ जाना और जब वररुचि मोहरों की थैली पानी में रखकर चला जाए तो उसे निकाल लाना / सेवक ने ऐसा ही किया और थैली लाकर मंत्री को सौंप दी। अगले दिन सुबह वररुचि पाया और सदा की तरह तख्ते पर बैठकर गंगा की स्तुति करने लगा। इतने में ही राजा और मंत्री भी वहाँ आ गए / स्तुति समाप्त हुई पर तख्ते को दबाने पर भी जब थैली ऊपर नहीं पाई, कोरा तख्ता ही दिखाई दिया तब शकटार ने व्यंगपूर्वक कहा-"पंडितप्रवर ! रात को गंगा में छुपाई हुई आपकी थैली तो इधर मेरे पास है।" यह कहकर शकटार ने सब उपस्थित लोगों को थैली दिखाते हुए वररुचि की पोल खोल दी। वररुचि कटकर रह गया / वह मंत्री से बदला लेने का अवसर देखने लगा। कुछ समय पश्चात् शकटार ने अपने पुत्र श्रियक का विवाह रचाया और राजा को उस खुशी के मौके पर भेंट देने के लिये उत्तम शस्त्रास्त्र बनवाने लगा / वररुचि को मौका मिला और उसने अपने कुछ शिष्यों को निम्न श्लोक याद करके नगर में उसका प्रचार करवा दिया "तं न विजाणेइ लोमो, जं सकडालो करिस्सइ / नन्दराउं मारेवि करि, सिरियउं रज्जे ठवेस्सइ॥" अर्थात्-लोग नहीं जानते कि शकटार मंत्री क्या करेगा? वह राजा नन्द को मारकर श्रियक को राज-सिंहासन पर आसीन करेगा। राजा ने भी यह बात सुनी / उसने शकटार के षड्यन्त्र को सच मान लिया। मंत्री जब दरबार में पाया और राजा प्रणाम करने लगा तो राजा ने कुपित होकर मुह फेर लिया / राजा के इस व्यवहार से शकटार भयभीत हो गया / और घर पाकर सब बताते हुए श्रियक से बोला "बेटा ! राजा का भयंकर कोप सम्पूर्ण वंश का भी नाश कर सकता है / अतएव कल जब मैं राजसभा में जाऊं और राजा फिर मुह फेर ले तो तुम मेरे गले पर उसी समय तलवार चला देना। मैं उस समय तालपुट विष अपने मुंह में रख लूंगा। मेरी मृत्यु उस विष से हो जाएगी, तुम्हें पितहत्या का पाप नहीं लगेगा।" श्रियक ने विवश होकर पिता की बात मान ली। अगले दिन शकटार श्रियक सहित दरबार में गया / जब वह राजा को प्रणाम करने लगा तो राजा ने पुन: मुह फेर लिया। इस पर श्रियक ने उसो झुकी हुई गर्दन को धड़ से अलग कर दिया। यह देखकर राजा ने चकित होकर कहा-"श्रियक, यह क्या कर दिया ?" श्रियक ने शांति से उत्तर दिया---'देव ! जो व्यक्ति आपको अच्छा न लगे वह हमें कैसे इष्ट हो सकता है ?" शकटार की मृत्यु से राजा खिन्न हुग्रा, किन्तु श्रियक की वफादारी भरे उत्तर से संतुष्ट भी। उसने कहा"श्रियक ! अपने पिता के मंत्री पद को अब तुम्हीं संभालो / " इस पर श्रियक ने विनयपूर्वक उत्तर दिया-"प्रभो ! मैं मंत्री का पद नहीं ले सकता / मेरे बड़े भाई स्थूलिभद्र, जो बारह वर्ष से कोशा गणिका के यहाँ रह रहे हैं, पिताजी के बाद इस पद के अधिकारी हैं / " श्रियक की यह बात सुनकर राजा ने उसी समय कर्मचारी को आदेश दिया कि स्थूलिभद्र को कोशा के यहाँ से ससम्मान ले आओ। उसे मन्त्रिपद दिया जायगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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