________________ मतिज्ञान] [113 खोजने निकल पड़ा / दूर जंगल में उसे राजकुमार मिल गया और दोनों मित्र साथ-साथ वहाँ से चले / मार्ग में अनेक राजाओं से युद्ध करके उन्हें जोता, अनेक कन्याओं से ब्रह्मदत्त का विवाह भी हुआ। धीरे-धीरे छह खण्ड को जीतकर ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती काम्पिल्यपुर आए और दीर्घपृष्ठ को मारकर चक्रवर्ती की ऋद्धि का उपभोग करते हुए सुख एवं ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करने लगे। इस प्रकार मन्त्रीपुत्र वरधनु ने अपनी कुटुम्ब की एवं ब्रह्मदत्त की रक्षा करते हुए ब्रह्मदत्त को चक्रवर्ती बनने में सहायता देकर पारिणामिकी बुद्धि का प्रमाण दिया। (12) चाणक्य-नन्द पाटलिपुत्र का राजा था। एक बार किसी कारण उसने चाणक्य नामक ब्राह्मण को अपने नगर से बाहर निकाल दिया / संन्यासी का वेश धारण करके चाणक्य घूमता-फिरता मौर्य देश में जा पहुँचा / वहाँ पर एक दिन उसने देखा कि एक क्षत्रिय पुरुष अपने घर के बाहर उदास बैठा है / चाणक्य ने इसका कारण पूछ लिया। क्षत्रिय ने बताया--"मेरी पत्नी गर्भवती है और उसे चन्द्रपान करने की इच्छा है / मैं इस इच्छा को पूरी नहीं कर सकता। अतः वह अत्यधिक कृश होती जा रही है / डर है कि इस दौहद को लिए हुए वह मर न जाय / " यह सुनकर चाणक्य ने उसकी पत्नी की इच्छा पूर्ण कर देने का आश्वासन दिया। सोच विचारकर चाणक्य ने नगर के बाहर एक तंबू लगवाया / उसमें ऊपर की तरफ एक चन्द्राकार छिद्र कर दिया। पूर्णिमा के दिन क्षत्राणी को किसी बहाने उसके पति के साथ वहाँ बुलवाया और तम्बू में ऊपरी छिद्र के नीचे एक थाली में कोई पेय-पदार्थ डाल दिया / जब चन्द्र उस छेद के ठीक ऊपर आया तो उसका प्रतिबिम्ब थाली में भरे हुए पदार्थ पर पड़ने लगा। उसी समय चाणक्य ने उस स्त्री से कहा-"बहन ! लो इस थाली में चन्द्र है, इसे पी लो।" क्षत्राणी प्रसन्न होकर उसे पीने लगो और ज्योंही उसने पेय-वस्तु समाप्त की चाणक्य ने रस्सी खींचकर उस छिद्र को बन्द कर दिया / स्त्री ने यही समझा कि मैंने 'चन्द्र' पी लिया है / चन्द्रपान की इच्छा पूर्ण हो जाने से वह शीघ्र स्वस्थ हो गई तथा समय आने पर उसने चन्द्र के समान ही एक अत्यन्त तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। नाम उसका चन्द्रगुप्त रखा गया। चन्द्रगुप्त जब बड़ा हुआ तो उसने अपनी माता को 'चन्द्र-पान कराने वाले चाणक्य को अपना मन्त्री बना लिया तथा उसकी पारिणामिकी बुद्धि की सहायता से नन्द को मारकर पाटलिपुत्र पर अपना अधिकार कर लिया। (13) स्थलिभद्र-जिस समय पाटलिपुत्र में राजा नन्द राज्य करता था, उसका मन्त्री शकटार नामक एक चतुर पुरुष था। उसके स्थूलिभद्र एवं श्रियक नाम के दो पुत्र थे तथा यक्षा, यक्षदत्ता, भूता, भूतदत्ता, सेणा, वेणा और रेणा नाम की सात पुत्रियां थीं। सबकी स्मरणशक्ति बड़ी तीव्र थी / अन्तर यही था कि सबसे बड़ी पुत्री यक्षा एक बार जिस बात को सुन लेती उसे ज्यों की त्यों याद कर लेती। दूसरी यक्षदत्ता दो बार सुनकर और इसी प्रकार बाकी कन्याएँ क्रमशः तीन, चार, पाँच, छ: और सात बार सुनकर किसी भी बात को याद करके सुना सकती थीं। पाटलिपुत्र में ही एक वररुचि नामक ब्राह्मण भी रहता था / वह बड़ा विद्वान था। प्रतिदिन एक सौ आठ श्लोकों की रचना करके राज-दरबार में राजा नन्द की स्तुति करता था। नन्द स्तुति सुनता और मन्त्री शकटार की ओर इस अभिप्राय से देखता था कि वह प्रशंसा करे तो उसके अनुसार रूप कुछ दिया जा सके / किन्तू शकटार मौन रहता अत: राजा उसे कुछ नहीं देता था / वररुचि प्रतिदिन खाली हाथ लौटता था / घर पर उसकी पत्नी उससे झगड़ा किया करती थी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org