SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 112] [नन्दीसूत्र को अपने व्यवहार पर घोर पश्चात्ताप होने लगा। पश्चात्ताप के परिणामस्वरूप उनकी प्रात्माओं के निर्मल हो जाने से उन्हें भी केवलज्ञान उपलब्ध हो गया / विपरीत परिस्थितियों में भी पूर्ण समता एवं क्षमा-भाव रखकर कैवल्य को प्राप्त कर लेना नागदत्त की पारिणामिकी बुद्धि के कारण ही संभव हो सका। (11) अमात्य-पुत्र काम्पिल्यपुर के राजा का नाम ब्रह्म, मंत्री का धनु, राजकुमार का ब्रह्मदत्त तथा मंत्री के पुत्र का नाम वरधनु था / ब्रह्म की मृत्यु हो जाने पर उसके मित्र दीर्घपृष्ठ ने राज्यकार्य संभाला किन्तु रानी चलनी से उसका अनैतिक सम्बन्ध हो गया। राजकुमार ब्रह्मदत्त को जब यह ज्ञात हुआ तो उसने अपनी माता तथा दीर्घपृष्ठ को मार डालने की धमकी दी। इस पर दोनों ने कुमार को अपने मार्ग का कंटक समझकर उसका विवाह करने तथा विवाहोपरान्त पुत्र और और पुत्रवधू को लाक्षागृह में जला देने का निश्चय किया / किन्तु ब्रह्मदत्त कुमार का वफादार मंत्री धनु एवं उसके पुत्र वरधनु की सहायता से लाक्षागृह में से निकल गया / वह वृत्तान्त पाठक पढ़ चुके हैं। तत्पश्चात् जब वे जंगल में जा रहे थे, ब्रह्मदत्त को प्यास लगी / वरधनु राजकुमार को एक वृक्ष के नीचे बिठाकर स्वयं पानी लेने चला गया। इधर जब दीर्घपृष्ठ को राजकुमार के लाक्षागृह से भाग निकलने का पता चला तो उसने कुमार और उसके मित्र वरधनु को खोजकर पकड़ लाने के लिये अनुचरों को दौड़ा दिया / सेवक दोनों को खोजते हुए जंगल के सरोवर के उसी तीर पर पहुंचे जहाँ वरधनु राजकुमार के लिए पानी भर रहा था / कर्मचारियों ने वरधनु को पकड़ लिया पर उसी समय वरधनु ने जोर से इस प्रकार शब्द किया कि कुमार ब्रह्मदत्त ने संकेत समझ लिया और वह उसी क्षण घोड़े पर सवार होकर भाग निकला। सेवकों ने वरधनु से राजकुमार का पता पूछा, किन्तु उसने नहीं बताया। तब उन्होंने उसे मारना-पीटना प्रारम्भ कर दिया। इस पर चतुर वरधनु इस प्रकार निश्चेष्ट होकर पड़ गया कि अनुचर उसे मृत समझकर छोड़ गये। उनके जाते ही वह उठ बेठा तथा राजकुमार को ढूंढने लगा। राजकुमार तो नहीं मिला पर रास्ते में उसे संजीवन और निर्जीवन. दो प्रकार की औषधियाँ प्राप्त हो गईं जिन्हें लेकर वह नगर की ओर लौट आया। जब वह नगर के बाहर हो था, उसे एक चांडाल मिला, उसने बताया कि तुम्हारे परिवार के सभी व्यक्तियों को राजा ने बंदी बना लिया है / यह सुनकर वरधनु ने चांडाल को इनाम का लालच देकर उसे 'निर्जीवन' ओषधि दी तथा कुछ समझाया। चांडाल ने सहर्ष उसकी बात को स्वीकार कर लिया और किसी तरह वरधनु के परिवार के पास जा पहुँचा परिवार के मुखिया को उसने अोषधि दे दी और बरधनु की बात कही / वरधनु के कथनानुसार निर्जीवन ओषधि को पूरे परिवार ने अपनी आँखों में लगा लिया / उसके प्रभाव से सभी मृतक के समान निश्चेष्ट होकर गिर पड़े। यह जानकर दीर्धपृष्ठ ने उन्हें चांडाल को सौंपकर कहा- "इन्हें श्मशान में ले जायो !" 'अन्धा क्या चाहे, दो आँखें।' चांडाल यही तो चाहता था / वह सभी को श्मशान में वरधनु के द्वारा बताये गये स्थान पर रख पाया / वरधनु ने आकर उन सभी को आँखों में 'संजीवन' ओषधि प्रांज दी। क्षण-मात्र में ही सब स्वस्थ होकर उठ बैठे और वरधनु को अपने समीप पाकर हषित हुए / तत्पश्चात् वरधनु ने अपने परिवार को किसी सम्बंधी के यहाँ सकुशल रखा और स्वयं राजकुमार ब्रह्मदत्त को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy