________________ 106] [ नन्दीसूत्र दयनीयता प्रदर्शित करने पर राजा उनसे मिला तथा गद्दारी के लिए फटकारने लगा / बेचारे पदाधिकारी घोर पाश्चर्य में पड़ गए पर अन्त में विनम्र भाव से एक ने कहा- "देव ! वर्षों से आपका नमक खा रहे हैं / भला हम इस प्रकार आपके साथ छल कर सकते हैं ? यह चालबाजी अभयकुमार की ही है / उसने आपको भुलावे में डालकर अपने पिता का व राज्य का बचाव कर लिया है। चंडप्रद्योतन के गले यह बात उतर गई / उसे अभयकुमार पर बड़ा क्रोध आया और नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि-'जो कोई अभयकुमार को पकड़कर मेरे पास लाएगा उसे राज्य की ओर से बहुमूल्य पुरस्कार दिया जाएगा।' नगर में घोषणा तो हो गई किन्तु बिल्ली के गले में घंटी बाँधने जाए कौन ? राजा के मंत्री, सेनापति आदि से लेकर साधारण व्यक्ति तक सभी को मानो साँप सूघ गया। किसी की हिम्मत नहीं हुई कि अभयकुमार को पकड़ने जाय / आखिर एक वेश्या ने यह कार्य करना स्वीकार किया और राजगह जाकर वहाँ श्राविका के समान रहने लगी। कुछ काल बीतने पर उस पाखंडी श्राविका नं एक दिन अभयकुमार को अपने यहाँ भोजन करने के लिये निमंत्रण भेजा। श्राविका समझकर अभयकुमार ने न्यौता स्वीकार कर लिया। वेश्या ने खाने की वस्तुओं में कोई नशीली चीज मिला दी। उसे खाते ही अभयकुमार मूछित हो गया / गणिका इसी पल की प्रतीक्षा कर रही थी। उसने अविलम्ब अभयकुमार को अपने रथ में डलवाया और उज्जयिनी ले जाकर चंडप्रद्योतन राजा को सौंप दिया। राजा हर्षित हुआ तथा होश में आने पर अभयकुमार से ब्यंगमिश्रित परिहासपूर्वक बोला- 'क्यों बेटा ! धोखेबाजी का फल मिल गया ? किस चतुराई से मैंने तुझे यहां पकड़वा मंगाया है।" अभयकुमार ने तनिक भी घबराए बिना निर्भयतापूर्वक तत्काल उत्तर दिया—'मौसाजी ! आपने तो मुझे बेहोश होने पर रथ में डालकर यहाँ मंगवाया है किन्तु मैं तो आपको पूरे होशोहवास में रथ पर बैठाकर जूते मारता हुअा राजगृह ले जाऊँगा।" राजा ने अभय की बात को उपहास समझकर टाल दिया और उसे अपने यहाँ रख लिया, किन्तु अभयकमार ने बदला लेने की ठान ली थी / वह मौके की ताक में रहने लगा। कुछ दिन बीत जाने पर अभयकुमार ने एक योजना बनाई। उसके अनुसार एक ऐसे व्यक्ति को खोज निकाला जिसकी आवाज ठीक चंडप्रद्योतन राजा जैसी थी। उस गरीब व्यक्ति को भारी इनाम का लालच देकर अपने पास रख लिया और अपनी योजना समझा दी। तत्पश्चात् एक दिन अभयकुमार उसे रथ पर बैठाकर नगरी के बीच से उसके सिर पर जूते मारता हुअा निकला। जूते खाने वाला चिल्लाकर कहता जा रहा था--"अरे, अभयकुमार मुझे जूतों से पीट रहा है, कोई छुड़ानो ! मुझे बचायो !" अपने राजा की जैसी आवाज सुनकर लोग दौड़े और उसे छुड़ाने लगे, किन्तु लोगों के आते ही जूते मारने वाला और जूते खाने वाला, दोनों ही खिलखिला कर हँस पड़े / अभयकुमार का खेल समझ लोग चुपचाप चल दिये। अभयकुमार निरंतर पाँच दिन तक इसी प्रकार करता रहा / बाजार के व्यक्ति यह देखते पर कुमार की क्रीडा समझकर हँसते रहते। कोई उस व्यक्ति को छुड़ाने नहीं आता। छठे दिन मौका पाकर अभयकुमार ने राजा चंडप्रद्योतन को ही बाँध लिया और बलपूर्वक रथ पर बैठाकर सिर पर जूते मारता हुआ बीच बाजार से निकला / राजा चिल्ला रहा था-"अरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org