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________________ मतिज्ञान] [105 मणि (19) सर्प (20) गेंडा (21) स्तूप-भेदन / ये सभी उदाहरण पारिणामिकी बुद्धि के उदाहरण हैं। अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान का निरूपण पूर्ण हुआ। (1) अभयकुमार-बहुत समय पहले उज्जयिनी नगरी में राजा चण्डप्रद्योतन राज्य करता था। एक बार उसने अपने साढूभाई और राजगृह के राजा श्रेणिक को दूत द्वारा कहलवा भेजा-- 'अगर अपना और राज्य का भला चाहते हो तो अनुपम बंकचूड़ हार, सेचनक हाथी, अभयकुमार पुत्र तथा रानी चेलना को अविलम्ब मेरे पास भेज दो।' दूत के द्वारा चंडप्रद्योतन का यह संदेश सुनकर श्रेणिक आगबबूला हो गया और दूत से कहा-"अवध्य होने के कारण तुम्हें छोड़ देता हूँ पर अपने राजा से जाकर कह देना कि यदि तुम अपनी कुशल चाहते हो तो अग्निरथ, अनिलगिरि हस्ती, वज्रजंघ दूत तथा शिवादेवी रानी, इन चारों को मेरे यहाँ शीघ्रातिशीघ्र भेज दो।" दूत के द्वारा यह उत्तर सुनते ही चंडप्रद्योतन भारी सेना लेकर राजगह पर चढ़ाई करने के लिए रवाना हो गया और राजगृह के चारों ओर घेरा डाल दिया / श्रेणिक ने भी युद्ध करने की तैयारी करली। सेना सुसज्जित हो गई। किन्तु पारिणामिकी बुद्धि के धारक अभयकुमार ने अपने पिता श्रेणिक से नम्रतापूर्वक कहा--"महाराज ! अभी अाप युद्ध करने का आदेश मत दीजिये, मैं कुछ ऐसा उपाय करूंगा कि 'साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे / ' अर्थात् मौसा चंडप्रद्योतन स्वयं भाग जाएँ और हमारी सेना भी नष्ट न होने पाए।" श्रेणिक को अपने पुत्र पर विश्वास था अतः उसने अभयकुमार की बात मान ली। इधर रात्रि को ही अभयकुमार काफी धन लेकर नगर से बाहर आया और उसे चंडप्रद्योतन के डेरे के पीछे भूमि में गड़वा दिया / तत्पश्चात् वह चंडप्रद्योतन के समक्ष आया। प्रणाम करके बोला-'मौसा जी ! आप किस फेर में हैं ? इधर अाप राजगृह को जीतने का स्वप्न देख रहे हैं और उधर आपके सभी वरिष्ठ सेनाधिकारियों को पिताजी ने घूस देकर अपनी ओर मिला लिया है। वे सूर्योदय होते ही आपको बन्दी बनाकर मेरे पिताजी के समक्ष उपस्थित कर देंगे / आप मेरे मौसा हैं, अतः प्रापको मैं धोखा खाकर अपमानित होते नहीं देख सकता।" चंडप्रद्योतन ने कुछ अविश्वास पूर्वक पूछा-'तुम्हारे पास इस बात का क्या प्रमाण है ?" तब अभयकुमार ने उन्हें चुपचाप अपने साथ ले जाकर गड़ा हुया धन निकाल कर दिखाया। धन देखकर चंडप्रद्योतन को अपनी सेना के मुख्याधिकारियों की गद्दारी का विश्वास हो गया और वह उसी समय घोड़े पर सवार होकर उज्जयिनी की ओर चल दिया। प्रातःकाल जब सेनापति आदि चंडप्रद्योतन के डेरे में राजगह पर धावा करने की प्राज्ञा लेने के लिए पाए तो डेरा खाली मिला। न राजा था और न ही उसका घोडा / सबने समझ लिया कि राजा वापिस नगर को लौट गए हैं। विना दूल्हे की बरात के समान सेना फिर क्या करती ! सभी वापिस उज्जयिनी लौट गये। वहाँ पाने पर सभी उनके रातों रात लौट आने का कारण जानने के लिए महल में गए / राजा ने सभी को धोखेवाज समझकर मिलने से इंकार कर दिया। बहुत प्रार्थना करने पर और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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