________________ 102] [नन्दीसूत्र भी जानकारी की और उसने निराशापूर्वक सभी घटनाएँ बताते हुए कहा-"महाराज ! मैंने जानबूझकर कोई अपराध नहीं किया है / मेरा दुर्भाग्य ही इतना प्रबल है कि, प्रत्येक अच्छा कार्य उलटा हो जाता है / ये लोग जो कह रहे हैं, सत्य है / मैं दंड भोगने के लिए तैयार हूँ।" राजा बहुत विचारशील था। सब बातें सुनकर उसने समझ लिया कि इस बिचारे ने कोई अपराध मन से नहीं किया है, अतः यह दंड का पात्र नहीं है। उसे दया आई और उसने चतुराई से फैसला करने का निर्णय किया। सर्वप्रथम बैल वाले को बुलाया गया और राजा ने उससे कहा"भाई ! तुम्हें अपने बैल लेने हैं तो पहले अपनी आँखें निकालकर इसे दे दो, क्योंकि तुमने अपनी आँखों से इसे बाड़े में बैल छोड़ते हुए देखा था।" __ इससे बाद घोड़ेवाले को बुलाकर राजा ने कहा- "अगर तुम्हें घोड़ा चाहिए तो पहले अपनी जिह्वा इसे काट लेने दो, क्योंकि दोषी तुम्हारी जिह्वा है, जिसने इसे घोड़े को डंडा मारने के लिए कहा था। इसे दंड मिले और तुम्हारी जिह्वा बच जाए यह न्यायसंगत नहीं। ऐसा करना अन्याय है / अतः पहले तुम जिह्वा दे दो फिर घोड़ा इससे दिलवा दिया जाएगा।" ___ इसके बाद नटों को भी बुलाया गया। राजा ने कहा- "इस दीन व्यक्ति के पास क्या है जो तुम्हें दिलवाया जाय ! अगर तुम्हें बदला लेना है तो इसे उसी वृक्ष के नीचे सुला देते हैं और अब जो तुम्हारा मुखिया बना हो, उससे कहो कि वह इसी व्यक्ति के समान गले में फंदा डालकर उसी डाल से लटक जाए और इस व्यक्ति के ऊपर गिर पड़े।" राजा के इन फैसलों को सुनकर तीनों अभियोगी चुप रह गये और वहाँ से चलते बने / राजा की बैनयिकी बुद्धि ने उस अभागे व्यक्ति के प्राण बचा लिए। (3) कर्मजा बुद्धि के उदाहरण ५१-उवयोगदिट्ठसारा कम्मपसंगपरिलोघणविसाला। साहक्कारफलवई कम्मसमुत्था हवइ बुद्धी / / हेरण्णिए करिसय, कोलिय डोवे य मुत्ति घय पवए। तुन्नाग वड्ढई य, पूयइ घड चित्तकारे य॥ ५१-उपयोग से जिसका सार-परमार्थ देखा जाता है, अभ्यास और विचार से जो विस्तृत बनती है और जिससे प्रशंसा प्राप्त होती है, वह कर्मजा बुद्धि कही जाती है / (1) सुवर्णकार (2) किसान (3) जुलाहा (4) दर्वीकार (5) मोती (6) घी (7) नट (8) दर्जी (8) बढ़ई (10) हलवाई (11) घट (12) तथा चित्रकार / इन सभी के उदाहरण कर्म से उत्पन्न बुद्धि के परिचायक हैं / विवरण इस प्रकार है (1) हैरण्यक-सुनार ऐसा कुशल कलाकार होता है कि अपने कला-ज्ञान के द्वारा घोर अन्धकार में भी हाथ के स्पर्शमात्र से ही सोने और चांदी की परीक्षा कर लेता है। (2) कर्षक (किसान)-एक चोर किसी वणिक के घर चोरी करने गया। वहाँ उसने दीवार में इस प्रकार सेंध लगाई कि कमल की आकृति बन गई। प्रातःकाल जब लोगों ने उस कलाकृति सेंध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org