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________________ मंतिज्ञान बता दिया कि- "मैंने अमुक वणिक्-पत्नी की दासी के बुलाए जाने पर इसके नख व केरा काटे थे।" दासी को पकड़ लिया गया। उसने भयभीत होकर सम्पूर्ण घटना का वर्णन कर दिया। यह उदाहरण राजकर्मचारियों की वैनयिकी बुद्धि का उदाहरण है। (15) बैलों का चुराया जाना, अश्व को मृत्यु तथा वृक्ष से गिरना एक व्यक्ति अत्यन्त ही पुण्यहीन था। वह जो कुछ भी करता उससे संकट में पड़ जाता था। एक बार उसने अपने एक मित्र से हल चलाने के लिए बैल माँगे और कार्य समाप्त हो जाने पर उन्हें लौटाने के लिए ले गया। उसका मित्र उस समय खाना खा रहा था। अतः अभागा अादमी बोला तो कुछ नहीं पर उसके सामने ही बैलों को बाड़े में छोड़ पाया, यह सोचकर कि वह देख तो रहा ही है। दुर्भाग्यवश बैल किसी प्रकार बाड़े से बाहर निकल गये और उन्हें कोई चुराकर भगा ले गया / बैलों का मालिक बाड़े में अपने बैलों को न देखकर पुण्यहीन के पास जाकर बैलों को माँगने लगा। किन्तु वह बेचारा देता कहाँ से? इस पर क्रोधित होकर उसका मित्र उसे पकड़कर राजा के पास ले चला। मार्ग में एक घुड़सवार सामने से आ रहा था। उसका घोड़ा बिदक गया और सवार को नीचे पटक कर भागने लगा। इस पर सवार चिल्लाकर बोला-"अरे भाई ! इसे डण्डे मारकर रोको।" पुण्यहीन व्यक्ति के हाथ में एक डंडा था, अतः उसने घुड़सवार की सहायता करने के उद्देश्य से सामने आते हुए घोड़े को डंडा मारा, किन्तु उसकी भाग्यहीनता के कारण डंडा घोड़े के मर्मस्थल पर लगा और घोड़े के प्राण-पखेरू उड़ गये। घोड़े का स्वामी यह देखकर बहुत क्रोधित हुआ और उसे राजा के द्वारा दंड दिलवाने के उद्देश्य से साथ हो लिया। इस प्रकार एक अपराधी और सजा दिलानेवाले दो, तीनों नगर की ओर चले / चलते-चलते रात हो गई और नगर के द्वार बंद मिले। अतः वे बाहर ही एक सघन वृक्ष के नीचे सो गये, यह सोचकर कि प्रात:काल द्वार खुलने पर प्रवेश करेंगे / किन्तु अभागे अपराधी को निद्रा नहीं आई और वह सोचने लगा-"भाग्य मेरा साथ नहीं देता। भला करने पर भी बुरा ही होता है। ऐसे जीवन से क्या लाभ ? मर जाऊँ तो सभी विपत्तियों से पिंड छूट जाएगा / अन्यथा न जाने और क्या-क्या कष्ट भोगने पड़ेंगे।" यह विचारकर उसने मरने का निश्चय कर लिया और अपने दुपट्ट को उसी वृक्ष की डाल से बाँधकर फंदा बनाया और अपने गले में डालकर लटक गया। पर मृत्यु ने भी उसका साथ नहीं दिया। दूपद्रा जीर्ण होने के कारण उसके भार को नहीं झेल पाया तथा टूट गया। परिणाम यह हुआ कि वह धम्म से गिरा भी तो नटों के मुखिया पर जो ठीक उसके नीचे सो रहा था। नटों के सरदार पर ज्यों ही वह गिरा, सरदार की मृत्यु हो गई। नटों में चीख-पुकार मच गई और सरदार की मौत का कारण उस पुण्यहीन को जानकर गुस्से के मारे वे लोग भी उसे पकड़कर सुबह होते ही राजा के पास ले चले। राज-दरबार में जब यह काफिला पहुँचा, सभी चकित होकर देखने लगे। राजा ने इनके आने का कारण पूछा। सभी ने अपना-अपना अभियोग कह सुनाया। राजा ने पुण्यहीन व्यक्ति से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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