________________ 100) नन्दीसूत्र राजा को वैद्य की बात पर विश्वास हो गया किन्तु हाथी के प्राण जाते देख उसने कहा"वैद्य जी! क्या यह पुनः स्वस्थ नहीं हो सकता?" वैद्य बोला-"क्यों नहीं हो सकता।" वैद्य ने पूछ के बाल के उसी रन्ध्र में अन्य किसी औषधि का संचार किया और देखते ही देखते हाथी सचेतन हो गया। वैद्य की विनयजा बुद्धि के चमत्कार को राजा ने खूब सराहना की। उसे पुरस्कृत किया। (11-12) रथिक एवं गणिका-रथिक अर्थात् रथ के सारथी और गणिका के उदाहरण स्थूल-भद्र की कथा में वर्णित हैं / वे भी वैनयिको बुद्धि के उदाहरण हैं। (13) शाटिका, तृण, तथा क्रौञ्च-किसी नगर में अत्यन्त लोभी राजा था। उसके राजकुमार एक बड़े विद्वान् प्राचार्य से शिक्षा प्राप्त करते थे। सभी राजकुमार अपने पिता से विपरीत उदार एवं विनयवान् थे। अत: आचार्य ने अपने उन सभी शिष्यों को गहरी लगन के साथ विद्याध्ययन कराया। शिक्षा समाप्त होने पर राजकुमारों ने अपने कलाचार्य को प्रचुर धन भेंट किया। राजा को जब इस बात का पता लगा तो उसने कलाचार्य को मारकर उसका धन ले लेने का विचार किया। राजकुमारों को किसी प्रकार इस बात का पता चल गया। अपने प्राचार्य के प्रति उनका असीम प्रेम तथा श्रद्धा थी अतः उन्होंने अपने गुरु की जान बचाने का निश्चय किया। राजकुमार प्राचार्य के पास गये। उस समय वे भोजन से पहले स्नान करने की तैयारी में थे। राजकुमारों से उन्होंने पहनने के लिए सूखी धोती माँगी पर कुमारों ने कह दिया-"शाटिका गीली है।" इतना ही नहीं, वे हाथ में तृण लेकर बोले-'तृण लम्बा है।" एक और राजकुमार बोला-"पहले क्रौञ्च सदा प्रदक्षिणा किया करता था, अब वह बाईं ओर घूम रहा है।" प्राचार्य ने जब राजकुमारों की ऐसी अटपटी बातें सुनी तो उनका माथा ठनका और उनकी समझ में आ गया कि-'मेरे धन के कारण कोई मेरा शत्रु बन गया है और मेरे प्रिय शिष्य मुझे चेतावनी दे रहे हैं।' यह ज्ञान हो जाने पर उन्होंने अपने निश्चित किए हुए समय से पहले ही राजकुमारों से विदा लेकर चुपचाप अपने घर की ओर प्रस्थान कर दिया। यह राजकुमारों की एवं कलाचार्य की वैनयिकी बुद्धि का उत्तम उदाहरण है। (14) नीबोदक-एक व्यापारी बहुत समय से विदेश में था। उसकी पत्नी ने वासनापूर्ति के लिए अपनी सेविका द्वारा किसी व्यक्ति को बुलवा लिया। साथ ही एक नाई को भी बुलवा भेजा, जिसने आगत व्यक्ति के नाखून एवं केशादि को संवारा तथा स्नानादि करवाकर शुभ्र वस्त्र पहनाए / रात्रि के समय जब मूसलधार पानी बरस रहा था, उस व्यक्ति ने प्यास लगने पर छज्जे से गिरते हुए वर्षा के पानी को प्रोक से पी लिया। संयोगवश उसी छज्जे के ऊपरी भाग पर एक मृत सर्प का कलेवर था और पानी उस पर से बहता हुआ पा रहा था। जल विष-मिश्रित हो गया था और उसे पीते ही दुराचारी पुरुष की मृत्यु हो गयी। यह देखकर वणिकपत्नी घबराई और सेवकों के द्वारा उसी समय मृत व्यक्ति को एक जनशून्य देवकुलिका में डलवा दिया। प्रातःकाल लोगों को मृतक का पता चला तथा राजपुरुषों ने आकर उसकी मृत्यु का कारण खोजना प्रारंभ कर दिया। उन्होंने देखा कि मृत व्यक्ति के नख व केश तत्काल ही काटे हुए हैं। इस पर शहर के नाइयों को बुलवाकर प्रत्येक से अलग-अलग पूछा गया कि इस व्यक्ति के नाखून और केश किसने काटे हैं ? उनमें से एक नाई ने मृतक को पहचानकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org