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________________ मतिज्ञान] तो हमारी सब तरह से हानि होगी। हम भी इस सेवक जैसे हो जाएंगे। किन्तु इसे जामाता बना लेने से धोड़े यहीं रहेंगे तथा और भी गुणयुक्त घोड़े बढ़ जाएँगे। सभी प्रकार से हमारी उन्नति होगी। दूसरे, यह अश्व-रक्षक सुन्दर युवक तो है ही, बहुत बुद्धिमान् भी है।" स्त्री सहमत हो गई और सेवक को स्वामी ने जमाई बनाकर दूरदर्शिता का परिचय दिया। यह सब अश्वों के व्यापारी की विनय से उत्पन्न बुद्धि के कारण हुआ। (E) ग्रन्थि--किसी समय पाटलिपुत्र में मुरुण्ड नामक राजा राज्य करता था। एक अन्य राजा ने उसे तीन विचित्र वस्तुएँ भेजीं / वे इस प्रकार थी-ऐसा सूत जिसका छोर नहीं था, एक ऐसी लाठी जिसकी गाँठ का पता नहीं चलता था और एक डिब्बा जिसका द्वार दिखाई नहीं देता था / उन सब पर लाख इस प्रकार लगाई गई थी कि किसी को इनका पता नहीं चलता था / राजा ने सभी दरबारियों को दिखाया किन्तु कोई भी इनके विषय में नहीं बता सका। राजा ने तब आचार्य पादलिप्त को बुलवाया और उनसे पूछा-"भगवन् ! क्या आप इन सबके विषय में बता सकते हैं ?" प्राचार्य ने स्वीकृति देते हुए गर्म पानी मँगवाया और पहले उसमें सूत को डाल दिया। उसमें लगी हुई लाख पिघल गई और सूत का छोर नजर आने लगा। तत्पश्चात् लाठी को पानी में डाला तो गाँठवाला भारी किनारा पानी में डब गया, जिससे यह साबित प्रा कि लाठी में अमुक किनारे पर गाँठ है। अन्त में डिब्बे को भो गरम पानी में डाला गया और लाक्षा पिघलते ही उसका द्वार दिखाई देने लगा। सभी व्यक्तियों ने एक स्वर से प्राचार्य की प्रशंसा की। तत्पश्चात् राजा मुरुण्ड ने प्राचार्य पादलिप्त से प्रार्थना की-"देव ! आप भी कोई ऐसी कौतूकपूर्ण वस्तू तैयार कीजिए जिसे मैं बदले में भेज सक।" इस पर प्राचार्य ने एक तुम्बे को बड़ी सावधानी से काटा और उसमें रत्न भरकर यत्नपूर्वक काटे हए हिस्से को जोड़ दिया। दूसरे राज्य से आए हुए पुरुषों से कहा--"इसे तोड़े बिना इसमें से रत्न निकाल लेना।" किन्तु उनके राज्य में कोई भी बिना तूम्बे को तोड़े रत्न नहीं निकाल सका। इस पर पुन: राजा समेत समस्त सभासदों ने प्राचार्य की वैनयिकी बुद्धि की भूरि-भूरि सराहना की। (10) अगद-एक नगर के राजा के पास सेना बहुत थोड़ी थी। पड़ोसी शत्रु राजा ने उसके राज्य को चारों ओर से घेर लिया। इस पर राजा ने आदेश दिया कि जिसके पास भी विष हो वह ले पाए / वहुत से व्यक्ति राजाज्ञानुसार विष लाए और नगर के बाहर स्थित उस कूप के पानी को विषमय बना दिया, जहाँ से शत्रु के सैन्य-दल को पानी मिलता था / इसी बीच एक वैद्य भी बहुत अल्प मात्रा में विष लेकर आया। राजा एक वैद्य को अत्यल्प विष लाया देखकर बहुत क्रुद्ध हुआ। किन्तु वैद्यराज ने कहा-"महाराज ! आप क्रोध न करें। यह सहस्रवेधी विष है। अभी तक जितना विष लाया गया होगा और उससे जितने लोग मर सकेंगे उससे अधिक नर-संहार तो इतने से विष से ही हो जाएगा।" राजा ने आश्चर्य से कहा--"यह कैसे हो सकता है ? क्या आप इसका प्रमाण दे सकेंगे ?" वैद्य ने उसी समय एक वृद्ध हाथी मँगवाया और उसकी पूछ का एक बाल उखाड़ लिया। फिर ठीक उसी स्थान पर सुई की नोक से विष का संचार किया। विष जैसे-जैसे शरीर में आगे बढ़ा वैसे-वैसे ही हाथी के शरीर का भाग जड़ होता चला गया / तब वैद्य ने कहा-'महाराज! देखिए ! यह हाथी विषमय हो गया है, इसे जो भी खाएगा, वह विषमय हो जाएगा। इसीलिए इस विष को सहस्रवेधी कहा जाता है।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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