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________________ 98] निन्दीसूत्र आश्चर्य की बात यह थी कि जब घुड़दौड़ होती तो वासुदेव का घोड़ा ही सबसे आगे रहता / सभी मोटे-ताजे घोड़े पीछे रह जाते / इसका कारण वासुदेव की अश्वपरीक्षा की प्रवीणता थी। यह विद्या उसने अपने कलाचार्य से बहुत विनयपूर्वक सीखी थी। विनय द्वारा ही बुद्धि तीक्ष्ण होती है तथा सीखे जाने वाले विषय का पूर्ण ज्ञान होता है / (7) गर्दभ---किसी नगर में एक राजा राज्य करता था / वह युवा था। उसने सोचा कि युवावस्था श्रेष्ठ होती है और युवक ही अधिक परिश्रम कर सकता है। यह विचार आते ही उसने अपनी सेना के समस्त अनुभवी एवं वृद्ध योद्धाओं को हटाकर तरुण युवकों को अपनी सेना में भरती किया। एक बार वह अपनी जवानों की सेना के साथ किसी राज्य पर आक्रमण करने जा रहा था किन्तु मार्ग भूल गया और एक बीहड़ वन में जा फंसा / बहुत खोजने पर भी रास्ता नहीं मिला। सभी प्यास के कारण छटपटाने लगे। पानी कहीं भी दिखाई नहीं दिया / तब किसी व्यक्ति ने राजा से प्रार्थना की-“महाराज ! हमें तो इस विपत्ति से उबरने का कोई मार्ग नहीं सूझता, कोई अनुभवी वयोवृद्ध हो तो वही संकट टाल सकता है।" यह सुनकर राजा ने उसी समय घोषणा करवाई-- 'सैन्यदल में अगर कोई अनुभवी व्यक्ति हो तो वह हमारे समक्ष आकर हमें सलाह प्रदान करे।' सौभाग्यवश सेना में एक बयोवर योदा ठावेश में आया हया था. जिसे उसका पितभक्त सैनिक पत्र लाया था। वह राजा के समीप आया और राजा ने उससे प्रश्न किया-"महानुभाव ! मेरी सेना को जल-प्राप्त हो सके ऐसा उपाय बताइये।" वृद्ध पुरुष ने कुछ क्षण विचार करके कहा"महाराज ! गधों को छोड़ दीजिए / वे जहाँ पर भूमि को सूबेंगे वहीं सेना के लिए जल प्राप्त हो जायगा।" राजा ने ऐसा ही किया तथा जल प्राप्त कर सभी सैनिक तरोताजा होकर अपने गन्तव्य की ओर चल पड़े / यह स्थविर पुरुष की वैनयिकी बुद्धि के द्वारा संभव हुआ। (8) लक्षण-एक व्यापारी ने अपने घोड़ों की रक्षा के लिये एक व्यक्ति को नियुक्त किया और वेतन के रूप में उसे दो धोडे देने को कहा / व्यक्ति ने इसे स्वीकार कर लिया तथा घोडों की रक्षा व सार-संभाल करना प्रारम्भ कर दिया। कुछ समय में व्यापारी की पुत्री से उसका स्नेह हो गया। सेवक चतुर था अतः उसने कन्या से पूछ लिया-"इन सब घोड़ों में से कौन से घोड़े श्रेष्ठ हैं ?" लड़की ने उत्तर दिया-“यों तो सभी घोड़े उत्तम हैं किन्तु पत्थरों से भरे हुए कुप्पे को वृक्ष पर से गिराने पर उसकी आवाज से जो भयभीत न हों वे श्रेष्ठ और लक्षण-सम्पन्न हैं।" लड़की के कथनानुसार उस व्यक्ति ने उक्त विधि से सब घोड़ों की परीक्षा कर ली। दो घोड़े उनमें से छांट लिये। जब वेतन लेने का समय आया तो उसने व्यापारी से उन्हीं दो घोड़ों की मांग की / अश्वों का स्वामी मन ही मन घबराया कि ये दोनों ही सर्वोत्तम घोड़े ले जायगा / अतः बोला"भाई ! इन घोड़ों से भी अधिक सुन्दर और हृष्ट-पुष्ट घोड़े ले जा।" सेवक नहीं माना तब चिन्तित गृहस्वामी अन्दर जाकर अपनी पत्नी से बोला-"भलीमानस ! यह सेवक तो बड़ा चतुर निकला। न जाने कैसे इसने अपने सबसे अच्छे दोनों घोड़ों की पहचान कर ली है और उन्हीं को वेतन के रूप में माँग रहा है / अतः अच्छा यही है कि इसे गृहजामाता बना लें।" ___ यह सुनकर स्त्री नाराज हुई, कहने लगी-"तुम्हारा दिमाग फिर गया है क्या ? नौकर को जमाई बनायोगे ?" इस पर व्यापारी ने उसे समझाया-“अगर ये सर्वलक्षण युक्त दोनों घोड़े चले गये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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