________________ मतिज्ञान] गुरु ने उससे पूछा-'तुम यह बताओ कि उक्त दोनों बातों की जानकारी तुमने किस प्रकार की ? विनयवान् शिष्य ने पुनः गुरु के चरण छूकर उत्तर दिया--"गुरुदेव, आपके चरणों के प्रताप से ही मैंने विचार किया कि पैर हाथी के होने पर भी इसके मूत्र के ढंग के कारण वह हथिनी होन चाहिए / मार्ग के दाहिनी ओर के घास व पत्रादि हो खाए हुए थे, बायीं ओर के नहीं, अतः अनुमान किया कि वह बायें नेत्र से कानी होगी। भारी जन-समूह के साथ हाथी पर आरूढ़ होकर जाने वाला राजकीय व्यक्ति ही हो सकता है। यह जानने के बाद हाथी से उतर कर की जाने वाली लघुशंका से यह जाना कि वह रानी थी। समीप की झाड़ी में उलझे हुए रेशमी और लाल वस्त्र-तंतुओं को देखकर विचार किया कि रानी सधवा है / वह दाँया हाथ भूमि पर रखकर खड़ी हुई, इससे गर्भवती होने का तथा दाँया पैर अधिक भारी पड़ने से मैंने उसके निकट प्रसव का अनुमान किया और सारे ही निमित्तों से यह जान लिया कि उसके पुत्र उत्पन्न होगा। __ दुसरी बात वृद्धा स्त्री की थी। उसके प्रश्न पूछते ही घड़े के गिरकर फूट जाने से मैंने विचार किया कि जिस मिट्टी से घड़ा बना था उसी में मिल गया है, अत: माता की कोख से जन्मा पुत्र भी उससे मिलने वाला है।" शिष्य की बात सुनकर गुरु ने स्नेहपूर्ण दृष्टि से देखते हुए उसकी प्रशंसा की। अविनीत से कहा-'देख, तू न मेरी आज्ञा का पालन करता है और न ही अध्ययन किये हुए विषय पर चिन्तनमनन करता है। ऐसी स्थिति में सम्यक्ज्ञान का अधिकारी कैसे बन सकता है ? मैं तो तुम दोनों को सदा ही साथ बैठाकर एक सरीखा विद्याभ्यास कराता हूँ किन्तु-"विनयाद्याति पात्रताम्" यानी विनय से पात्रता, सुयोग्यता प्राप्त होती है / तुझमें विनय का अभाव है, इसीलिये तेरा ज्ञान भी सम्यक नहीं है / ' गुरु के वचन सुनकर अविनीत शिष्य लज्जित होकर मौन रह गया / यह उदाहरण शिष्य की वैनयिकी बुद्धि का है। (2) अत्थसत्थे (3) लेख (4) गणित अर्थात् आदि का ज्ञान भी विनय के द्वारा होता है। (5) कूप-एक भूवेत्ता अपने शिक्षक के पास अध्ययन करता था। उसने शिक्षक की प्रत्येक आज्ञा को एवं सुझाव को इतने विनयपूर्वक माना कि वह अपने विषय में पूर्ण पारंगत हो गया / अपनी चामत्कारिक, वैनयिकी बुद्धि के द्वारा प्रत्येक कार्य में सफलता प्राप्त करने लगा। एक बार किसी ग्रामीण ने उससे पूछा---'मेरे खेत में कितनी गहराई तक खोदने पर पानी निकलेगा?" भूवेत्ता ने परिमाण बताया। उसी के अनुसार किसान ने भूमि में कुआ खोद लिया किन्तु पानी नहीं निकला। किसान पुनः भूवेत्ता के पास जाकर बोला-"आपके निर्देशानुसार मैंने कुया खोद डाला। किन्तु पानी नहीं निकला।” भूमि परीक्षक ने खोदे हुए कुए के पास जाकर बारीकी से निरीक्षण किया और तब किसान से कहा--"इसके पार्श्व भूभाग पर एड़ी से प्रहार करो।" किसान ने वही किया और चकित रह गया. यह देखकर कि उस छोटे से स्थान स्रोत मानो बाँध तोड़कर बह निकला है। किसान ने भूवेत्ता की वैनयिकी वुद्धि का चमत्कार देखकर उसकी बहुत प्रशंसा की तथा अपनी सामर्थ्य के अनुसार द्रव्य भेंट किया। (6) अश्व-एक बार बहुत से व्यापारी द्वारका नगरी में अपने घोड़े बेचने के लिये गये। नगर के कई राजकुमारों ने मोटे-ताजे और डील-डौल से बड़े देखकर घोड़े खरोद लिए। किन्तु वासुदेव नामक एक युवक ने जो अश्व-परीक्षा में पारंगत था, एक दुबला-पतला घोड़ा खरीदा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org