________________ [नन्दीसूत्र उन्होंने देखा कि ग्राम के बाहर एक विशाल सरोवर के तीर पर किसी अतिसम्पन्न व्यक्ति का पड़ाव पड़ा हुआ है। तम्बुओं के एक ओर बाँये नेत्र से कानी एक हथिनी भी बँधी हुई है। ठीक उसी समय दोनों शिष्यों ने यह भी देखा कि एक दासी जैसी लगने वाली स्त्रो एक सुन्दर तम्बू से निकली और वहीं खड़े हुए एक प्रभावशाली व्यक्ति से बोली-"मंत्रिवर ! महाराज को जाकर बधाई दीजिएराजकुमार का जन्म हुआ है।" __यह सब देख सुनकर जिस शिष्य ने ये सारी बातें पहले ही बता दी थीं, वह बोला-"देखो वाम नेत्र से कानी हथिनी खड़ी है और दासी के वचन सुनकर हमें यह भी ज्ञात हो गया है कि उस पर गर्भवती रानी सवार थी जिसे अभी-अभी पत्रलाभ हआ है।" अविनीत शिष्य ने बेदिली से उत्तर दिया-"हाँ मैं समझ गया, तुम्हारा ज्ञान सही है अन्यथा नहीं।" तत्पश्चात् दोनों सरोवर में हाथपैर धोकर एक वट वृक्ष के नीचे विश्राम हेतु बैठ गये / ___ कुछ समय पश्चात् ही एक वृद्धा स्त्री अपने मस्तक पर पानी का घड़ा लिए हुए उधर से निकली / वृद्धा की नजर उन दोनों पर पड़ी। उसने सोचा-ये दोनों विद्वान् मालूम होते हैं, क्यों न इनसे पूछ् कि मेरा विदेश गया हुआ पुत्र कब लौटकर पाएगा?" यह विचार कर वह शिष्यों के समीप गई और प्रश्न करने लगी। किन्तु उसी समय उसका धड़ा सिर से गिरा और फूट गया / सारा पानी मिट्टी में समा गया। यह देखकर अविनीत शिष्य झट बोल पड़ा-'बुढ़िया ! तेरा पुत्र घड़े के समान ही मृत्यु को प्राप्त हो गया है।" बृद्धा सन्न रह गई किन्तु उसी समय दूसरे ज्ञानी शिष्य ने कहा-"मित्र, ऐसा मत कहो। इसका पुत्र तो घर आ चुका है।" उसके बाद उसने वृद्धा को संबोधित करते हुए कहा---'"माता ! तुम शीघ्र पर जाग्रो, तुम्हारा पुत्र तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है।" वद्धा की जान में जान आई। उसने अपने घर की ओर कदम बढ़ा दिये / घर पहुँचते ही देखा कि लड़का धूलि धूसरित पैरों सहित ही उसकी प्रतीक्षा में बैठा है / हर्ष-विह्वल होकर उसने पुत्र को अपने कलेजे से लगा लिया और उसी समय नैमित्तिक शिष्य के विषय में बताकर पुत्र सहित उस वट वृक्ष के नीचे आई। शिष्य को उसने यथायोग्य दक्षिणा के साथ अनेक आशीर्वाद दिये। इधर अविनीत शिष्य ने जब यह देखा कि मेरी बातें मिथ्या सिद्ध होती हैं और मेरे साथी की सत्य, तो वह दुःख और क्रोध से भरकर सोचने लगा–“यह सब गुरुजी के पक्षपात के कारण ही हो रहा है / उन्होंने मुझे ठीक तरह से नहीं पढ़ाया।" ऐसे ही विचारों के साथ वह गुरु का कार्य सम्पन्न होने के पश्चात् वापिस लौटा / लौटने पर विनीत शिष्य आनन्दाश्रु बहाता हुआ गद्गद भाव से गरु के चरणों पर झक गया किन्तु अविनीतठ की तरह खडा रहा। यह देखकर गरु ने प्रश्नसूचक दृष्टि से उसकी ओर देखा / तुरंत ही वह बोला-'अापने मुझे सम्यक रूप से नहीं पढ़ाया है, इसलिए मेरा ज्ञान असत्य है और इसे मन लगाकर पढ़ाया है, अतः इसका ज्ञान सत्य / आपने पक्षपात किया है।' गुरुजी यह सुनकर चकित हुए पर कुछ समझ न पाने के कारण उन्होंने अपने विनयी शिष्य से पूछा- 'वत्स क्या बात है ? किन घटनाओं के आधार पर तुम्हारे गुरुभाई के मन में ऐसे विचार पाए ?' विनीत शिष्य ने मार्ग में घटी हुई घटनाएँ ज्यों की त्यों कह सुनाई ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org