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________________ मतिज्ञान [25 (2) वैनयिको बुद्धि का लक्षण ५०-भरनित्थरण-समत्था, तिवग्ग-सुत्तत्थ-गहिय-पेयाला / उभो लोग फलवई, विणयसमुत्था हवइ बुद्धी // विनय से पैदा हुई बुद्धि कार्य भार के निरस्तरण अर्थात् वहन करने में समर्थ होती है / त्रिवर्ग-धर्म, अर्थ, काम का प्रतिपादन करने वाले सूत्र तथा अर्थ का प्रमाण-सार ग्रहण करनेवाली है तथा यह विनय से उत्पन्न बुद्धि इस लोक और परलोक में फल देनेवाली होती है / वैनयिकी बुद्धि के उदाहरण निमित्ते-प्रत्थसत्थे अ, लेहे गणिए अकब अस्से य / गद्दभ-लक्खण गंठी, अगए रहिए य गणिया य / / सीमा साडो दीहं च तणं, अवसथ्वयं च कुचस्स / निव्वोदए य गोणे, घोडग पडणं च रुक्खायो / __50--(1) निमित्त (2) अर्थशास्त्र (3) लेख (4) गणित (5) कूप (6) अश्व (7) गर्दभ (8) लक्षण (1) ग्रथि (10) अगड (11) रथिक (12) गणिका (13) शीताशाटी (गीली धोती) (14) नीबोदक (15) बैलों की चोरी, अश्व का मरण, वृक्ष से गिरना / ये वैनयिकी बुद्धि के उदाहरण हैं। (1) निमित्त—किसी नगर में एक सिद्ध पुरुष रहता था। उसके दो शिष्य थे। गुरु का दोनों पर समान स्नेह था। वह समान भाव से दोनों को निमित्त शास्त्र का अध्ययन कराता था। दोनों शिष्यों में से एक बड़ा विनयवान था / अत: गूरु जो याज्ञा देते उसका यथावत् पालन करता तथा जो भी सिखाते उस पर निरन्तर चिन्तन-मनन करता रहता था। चिन्तन करने पर जिस विषय में उसे किसी प्रकार की शंका होती उसे समझने के लिये अपने गुरु के समक्ष उपस्थित होता तथा विनयपूर्वक उनकी चरण वंदना करके शंका का समाधान कर लिया करता था। किन्तु दूसरा शिष्य अविनीत था और बार-वार गुरु से कुछ पूछने में भी अपना अपमान समझता था। प्रमाद के कारण पठित विषय पर विमर्श भी नहीं करता था / अत: उसका अध्ययन अपूर्ण एवं दोषपूर्ण रह गया जबकि पहला विनीत शिष्य सर्वगुणसम्पन्न एवं निमित्तज्ञान में पारंगत हो गया। एक बार गुरु की आज्ञा से दोनों शिष्य किसी गांव को जा रहे थे। मार्ग में उन्हें बड़े-बड़े पैरों के पदचिह्न दिखाई दिये। अविनीत शिष्य ने अपने गुरुभाई से कहा---"लगता है कि ये पदचिह्न किसो हाथी के हैं।" उत्तर देते हुए दूसरा शिष्य बोला--- "नहीं मित्र ! ये पैरों के चिह्न हाथी के नहीं, हथिनी के हैं / वह हथिनी वाम नेत्र से कानी है। इतना ही नहीं हथिनी पर कोई रानी सवार है और वह सधवा तथा गर्भवती भी है। रानी आजकल में ही पुत्र का प्रसव करेगी।" केवल पद-चिह्नों के आधार पर इतनी बातें सुनकर अविचारी शिष्य की आँखें कपाल पर चढ़ गईं। उसने कहा—“यह सब बातें तुम किस आधार पर कह रहे हो ?' विनीत शिष्य ने उत्तर दिया-"भाई ! कुछ आगे चलने पर तुम्हें सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा।' यह सुनकर प्रश्नकर्ता शिष्य चुप हो गया और दोनों चलते-चलते कुछ समय पश्चात् अपने गन्तव्य ग्राम तक पहुँच गये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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