________________ 94] [नन्दीसूत्र मेरे पति द्वारा ब्याज आदि पर दिये हुए रुपये वसूल कर मुझे दिलवा दें।" सेठ का मित्र बड़ा स्वार्थी था / वह बोला- "अगर तुम मुझे उस धन में से हिस्सा दो तो मैं रुपया वसूल कर लाऊँगा।" सेठानी ने इस बात को स्वीकार करते हुए उत्तर दिया-'जो आप चाहते हों वह मुझे दे देना। तत्पश्चात् सेठ के मित्र ने सेठ का सारा रुपया वसूल कर लिया किन्तु वह सेठानी को कम देकर स्वयं अधिक लेना चाहता था। इस बात पर दोनों के बीच विवाद हो गया और वे न्यायालय में पहुँचे। न्यायाधीश ने मित्र को प्राज्ञा देकर सम्पूर्ण धन वहाँ मँगवाया और उसके दो ढेर किये। एक ढेर बड़ा था और दूसरा छोटा। इसके बाद न्यायाधीश ने सेठ के मित्र से पूछा- 'तुम इन दोनों भागों में से कौन सा लेना चाहते हो?" मित्र तुरन्त बोला—"मैं बड़ा भाग लेना चाहता हूँ।" तब न्यायाधीश ने सेठानी के शब्दों का उल्लेख करते हुए कहा- "तुमसे सेठानी ने पूर्व में ही कहा था'जो आप चाहते हों वह मुझे दे देना' इसलिये अब इन्हें यही बड़ा भाग दिया जायगा, क्योंकि तुम इसे चाहते हो / " सेठ का मित्र सिर पीटकर रह गया और चुपचाप धन का छोटा भाग लेकर चला गया / न्यायाधीश की प्रोत्पत्तिको बुद्धि का यह उदाहरण है। (26) शतसहस्र-एक परिव्राजक बड़ा कुशाग्रबुद्धि था। वह जिस बात को एक बार सुन लेता उसे अक्षरश: याद कर लेता था। उसके पास चाँदी का एक बहुत बड़ा पात्र था जिसे वह 'खोरक' कहता था। अपनी प्रज्ञा के अभिमान में चूर होकर उसने एक बार बहुत से व्यक्तियों के समक्ष प्रतिज्ञा की-"जो व्यक्ति मुझे पूर्व में कभी न सुनी हुई यानी 'अश्रुतपूर्व' बात सुनायेगा उसे मैं चाँदी का यह बृहत् पात्र दे दूंगा।" इस प्रतिज्ञा को सुनकर बहुत से व्यक्ति आए और उन्होंने अनेकों बातें परिव्राजक व्राजक अपनी विशिष्ट स्मरणशक्ति के कारण उन बातों को उसी समय अक्षरश: सुना देता था और कहता--"यह तो मैंने पहले भी सुनी है।" परिव्राजक की चालाकी को एक सिद्धपुत्र ने समझा और उसने निश्चय किया कि मैं परिव्राजक को सबक सिखाऊँगा। परिव्राजक की प्रतिज्ञा की सर्वत्र प्रसिद्धि हो गई थी। वहाँ के राजा ने अपने दरबार में परिव्राजक और उस सिद्धपुत्र को बुलवाया जिसने परिव्राजक को परास्त करने की चुनौती दी थी। राजसभा में सबके समक्ष सिद्धपुत्र ने कहा "तुझ पिया मह पिउणो, धारेइ अणूणगं सयसहस्सं / जइ सुयपुव्वं दिज्जउ, अह न सुयं खोरयं देसु / / " अर्थात् “तुम्हारे पिता को मेरे पिता के एक लाख रुपये देने हैं। यदि यह बात तुमने पहले सुनी है तो अपने पिता का एक लाख रुपये का कर्ज चुका दो, और यदि नहीं सुनी है तो अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार चाँदी का पात्र (खोरक) मुझे सौंप दो।" बेचारा परिव्राजक अपने फैलाए हुए जाल में खुद ही फंस गया। उसे अपनी पराजय स्वीकार करनी पड़ी पोर खोरक सिद्धपुत्र को मिल गया / यह सिद्धपुत्र को औत्पत्तिकी बुद्धि का अनुपम उदाहरण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org