________________ मतिज्ञान] [93 यह जान कर उसने एक योजना बनाई / उसने अपने गाँव में रहने वाले बन्धुओं को समाचार भेजा-"मैं अमुक दिन रात्रि के समय कुछ गोबर के पिण्ड नदी में प्रवाहित करूँगा / उन्हें तुम लोग निकाल लेना।" इसके बाद शिक्षक ने अपने द्रव्य को गोबर में डालकर कुछ पिण्ड बना लिये और उन्हें अच्छी तरह सुखा लिया। तत्पश्चात् अपने शिष्यों को बुलाकर उन्हें कहा- "हमारे कुल में यह परम्परा है कि जब शिक्षा समाप्त हो जाए तो किसी पर्व अथवा शुभ तिथि में स्नान करके मंत्रों का उच्चारण करते हुए गोबर के सूखे पिण्ड नदी में प्रवाहित किये जाते हैं। अतः अमुक रात्रि को यह कार्यक्रम होगा।" निश्चित की गई रात्रि में शिक्षक ने उनके साथ जाकर मंत्रोच्चारण करते हुए गोबर के सब पिण्ड नदी में प्रवाहित कर दिये और जब वे निश्चित स्थान पर पहुँचे तो कलाचार्य के बन्धुबान्धव उन्हें सुरक्षित निकालकर अपने घर ले गये / कुछ समय बीतने पर एक दिन वह शिक्षक अपने शिष्यों और उनके सगे-संबंधियों के समक्ष मात्र शरीर पर वस्त्र पहनकर विदाई लेकर अपने ग्राम की ओर चल दिया। यह देखकर लड़कों के अभिभावकों ने समझ लिया कि इसके पास कुछ नहीं है / अतः उसे लूटने और मारने का विचार छोड़ दिया। शिक्षक अपनी औत्पत्तिकी बुद्धि के फल-स्वरूप सकुशल अपने घर पहुँच गया / (25) अर्थशास्त्र-नीतिशास्त्र—एक व्यक्ति को दो पत्नियाँ थीं। दोनों में से एक बाँझ थी तथा दूसरी के एक पुत्र था। दोनों माताएँ पुत्र का पालन-पोषण समान रूप से करती थी। अतः लड़के को यह मालूम ही नहीं था कि उसकी सगी माता कौन है ? एक बार वह वणिक अपनी दोनों पत्नियों और पुत्र को साथ लेकर भगवान् सुमतिनाथ के नगर में गया किन्तु वहाँ पहुँचने के कुछ समय पश्चात् ही उसका देहान्त हो गया / उसके मरणोपरान्त उसकी दोनों पत्नियों में सम्पूर्ण धन-वैभव विवाद होने लगा. क्योंकि पत्र पर जिस स्त्री का अधिकार होता वही गह-स्वामिनी थी। कुछ भी निर्णय न होने से विवाद बढ़ता चला गया और राज-दरबार तक पहुँचा / वहाँ भी फैसला कुछ नहीं हो पाया। इसी बीच इस विवाद को महारानी सुमंगला ने भी सुना। वह गर्भवती थी। उसने दोनों वणिक-पत्नियों को अपने समक्ष उपस्थित होने का आदेश दिया। उनके आने पर कहा-"कुछ समय पश्चात् मेरे उदर से पुत्र जन्म लेगा और वह अमुक अशोक वृक्ष के नीचे बैठकर तुम्हारा विवाद निपटाएगा / तब तक तुम दोनों यहीं आनन्दपूर्वक रहो।" भगवान् सुमतिनाथ की माता, सुमंगला देवी की यह बात सुनकर बणिक की वन्ध्या पत्नी ने सोचा--"अभी तो महारानी के पुत्र का जन्म भी नहीं हुग्रा / पुत्र जन्म लेकर बड़ा होगा तब तक तो यहाँ आनन्द से रह लिया जाय / फिर जो होगा देखा जायगा।" यह विचारकर उसने तुरन्त ही सुमंगला देवी की बात को स्वीकार कर लिया। यह देखकर महारानी सुमंगला ने जान लिया कि बच्चे की माता यह नहीं है / उसे तिरस्कृत कर वहां से निकाल दिया तथा बच्चा असली माता को सौंपकर उसे गह-स्वामिनी बना दिया। यह उदाहरण माता सुमंगला देवी की अर्थशास्त्रविषयक प्रौत्पत्तिकी बुद्धि का है। (26) इच्छायमहं-किसी नगर में एक सेठ रहता था। उसकी मृत्यु हो गई / सेठानी बड़ी परेशानी का अनुभव करने लगी, क्योंकि सेठ के द्वारा ब्याज आदि पर दिया हुआ रुपया वह वसूल नहीं कर पाती थी। तब उसने सेठ के एक मित्र को बुलाकर उससे कहा-"महानुभाव ! कृपया आप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org