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________________ 92] [नन्दीसूत्र योग्य पदार्थ उसी प्रतिमा के मस्तक पर, कन्धों पर, हाथों पर, जंघा पर तथा पैरों पर रख देता था। बन्दर उन स्थानों पर से भोज्य पदार्थ खा जाते तथा प्रतिमा पर उछल-कद करते रहते। इस प्रकार वे प्रतिमा की शक्ल को पहचान गये और उससे खूब खेलने लगे। कुछ दिन बीतने पर एक पर्व के दिन उस भले मित्र ने अपने मायावी मित्र के यहाँ जाकर उससे कहा- "अाज त्यौहार का दिन है / अपने दोनों पुत्रों को मेरे साथ भोजन करने के लिए भेज दो।" मित्र ने प्रसन्न होकर लड़कों को खाने के लिए भेज दिया। भले मित्र ने समय पर बच्चों को बहुत प्यार से खिलाया और फिर एक अन्य स्थान पर सुखपूर्वक छिपा दिया। सायंकाल के समय कपटी मित्र अपने लड़कों को लेने के लिये आया। उसे दूर से आता देख कर ही शीघ्रतापूर्वक पहले मित्र ने कपटी की उस प्रतिमा को वहाँ से हटा दिया और उसी स्थान पर एक प्रासन बिछा दिया / कपटी मित्र सहज भाव से उसी प्रासन पर बैठ गया। उसके मित्र ने दोनों बन्दरों को एक कमरे से बाहर निकाल दिया। दोनों उछलते-कूदते हुए सीधे उस मायावी मित्र के पास पाए और अभ्यासवश उसके सिर पर कंधों पर व गोद में बैठकर किलकारियाँ भरते हुए अपनी भाषा में खाना मांगने लगे। क्योंकि उसी स्थान पर पहले उसकी प्रतिमा थी जिससे दोनों परिचित थे / यह देखकर मायावी ने पूछा-"मित्र, यह क्या तमाशा है ? ये दोनों बन्दर तो मेरे साथ इस प्रकार व्यवहार कर रहे हैं जैसे मुझ से परिचित हों।" यह सुनकर उस व्यक्ति ने गर्दन झुकाकर उदास भाव से कहा-"मित्र, ये दोनों तुम्हारे ही पुत्र हैं / दुर्भाग्य से बन्दर बन गये, इसी कारण तुम्हें प्यार कर रहे हैं / " मायावी मित्र अपने मित्र की बात सुनकर उछल पड़ा और उसे पकड़ कर झंझोड़ते हुए बोला-"क्या कह रहे हो? मेरे पुत्र तो तुम्हारे घर भोजन करने आये थे! बन्दर कैसे हो गये? क्या मनुष्य भी कभी बन्दर बन सकते हैं ?" पहले वाले मित्र ने शान्तिपूर्वक उत्तर दिया--"मित्र ! लगता है आपके अशुभ कर्मों के कारण ऐसा हुआ है, क्या सुवर्ण कभी कोयला बना करता है, पर हमारे भाग्यवश वैसा हुअा।" मित्र की यह बात सुनकर कपटी मित्र के कान खड़े हो गये। उसे लगा कि इसको मेरी धोखेबाजी का पता चल गया है किन्तु उसने सोचा-अगर मैं शोर मचाऊँगा तो राजा को पता लगते ही मुझे पकड़ लिया जायगा और धन तो छिनेगा ही, मेरे पुत्र भी पुनः मनुष्य न बन सकेंगे। यह विचार कर उस मायावी ने यथातथ्य सारी घटना मित्र को कह सुनाई। जंगल से लाए हुए धन का आधा भाग भी उसे दे दिया। सरल स्वभाव मित्र ने भी उसके दोनों पुत्रों को लाकर उसे सौंप दिया। यह उदाहरण सरल स्वभाव मित्र की प्रौत्पत्तिकी बुद्धि का सुन्दर उदाहरण है / (24) शिक्षा-धनुर्वेद-एक व्यक्ति धनुर्विद्या में बहुत निपुण था। किसी समय वह भ्रमण करता हुआ एक नगर में पहुँचा। वहाँ जब उसकी कलानिपुणता का लोगों को पता चला तो बहुत से अमीरों के लड़के उससे धनुर्विद्या सीखने लगे। विद्या सीखने पर उन धनिक-पुत्रों ने अपने कलाचार्य को बहुत धन दक्षिणा के रूप में भेंट किया / जब लड़कों के अभिभावकों को यह ज्ञात हुआ तो उन्हें बहत क्रोध आया और सबने मिलकर तय किया कि जब वह व्यक्ति धन लेक तो रास्ते में इसे मार कर सब छीन लेंगे। इस बात का किसी तरह धनुविद्या के शिक्षक को पता चल गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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