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________________ मतिज्ञान] [86 घर लौट आई। ग्राम से लौटकर एक बार संयोगवश जुलाहा मधु खरीदने के लिए बाजार जाने को तैयार हुआ / यह देखकर स्त्री ने उसे रोका और कहा--- "तुम मधु खरीदते क्यों हो? मैं मधु का एक विशाल छत्ता ही तुम्हें बताए देती हूँ।" ऐसा कहकर वह जुलाहे को जाल वृक्षों के पास ले गई पर वहाँ छत्ता दिखाई न देने पर उस स्थान पर पहुँची जहाँ घने वृक्ष थे / और पिछले दिन उसने अनाचार का सेवन किया था। वहीं पर छत्ता था जो उसने पति को दिखा दिया। जुलाहे ने छत्ता देखा पर साथ ही उस स्थान का निरीक्षण भी कर लिया। अपनी औत्पत्तिकी बुद्धि से वह समझ गया कि इस स्थान पर उसकी स्त्री निरर्थक नहीं पा सकती / निश्चय ही यहाँ आकर यह दुराचार-सेवन करती है। (19) मुद्रिका-किसी नगर में एक ब्राह्मण रहता था। नगर में प्रसिद्ध था कि वह बड़ा सत्यवादी है अं है और कोई अपनी किसी भी प्रकार की धरोहर उसके पास रख जाता है तो, चाहे कितने भी समय के बाद मांगे, वह ब्राह्मण पुरोहित तत्काल लौटा देता है। यह सुनकर एक द्रमक-गरीब व्यक्ति ने अपनी हजार मोहरों की थैली उस पुरोहित के पास धरोहर के रूप में रख दी और स्वयं देशान्तर में चला गया। बहुत समय पश्चात् जब वह लौटा तो पुरोहित से अपनी थैलो मांगने पाया / किन्तु ब्राह्मण ने कहा "तू कौन है ? कहाँ से पाया है ? कैसी तेरी धरोहर !" बेचारा गरीब व्यक्ति ऐसा टका-सा जवाब पाकर पागल-सा हो गया और “मेरी हजार मोहरों की थैली' इन शब्दों का बार-बार उच्चारण करता हुआ नगर भर में घूमने लगा। एक दिन उस व्यक्ति ने राज्य के मंत्री को कहीं जाते हुए देखा तो उनसे ही कह बैठा"पुरोहित जी ! मेरी हजार मोहरों की थैली, जो आपके पास धरोहर में रखी है, लौटा दीजिए।" मंत्री उस दरिद्र व्यक्ति की बात सुनकर चकराया पर समझ गया कि 'दाल में कुछ काला है।' इस व्यक्ति को किसी ने धोखा दिया है। वह द्रवित हो गया और राजा के पास पहुंचा। राजा ने जब उस दीन व्यक्ति को करुण- कथा सुनी तो उसे और पुरोहित दोनों को बुलवा भेजा। दोनों राजसभा में उपस्थित हुए तो राजा ने पुरोहित से कहा- "ब्राह्मण देवता ! तुम इस व्यक्ति की धरोहर लौटाते क्यों नहीं हो ?" पुरोहित ने राजा से भी यही कहा-"महाराज ! मैंने इसे कभी नहीं देखा और न ही इसकी कोई धरोहर मेरे पास है।" यह सुनकर राजा चुप रह गया और पुरोहित भी उठकर घर को रवाना हो गया। इसके बाद राजा ने द्रमक को बहुत दिलासा देकर शान्त किया और पूछा"क्या सचमुच ही पुरोहित के यहाँ तुमने मोहरों की थैली धरोहर के रूप में रखी थी?" द्रमक ने जब राजा से आश्वासन पाया तो उसकी बुद्धि कुछ ठिकाने पाई और उसने अपनी सारी कहानी तथा धरोहर रखने का दिन, समय, स्थान आदि सब बता दिया। राजा बुद्धिमान् था अतः उसने धूर्त पुरोहित को धूर्तता से ही पराजित करने का विचार किया। एक दिन उसने पुरोहित को बुलाया तथा उसके साथ शतरंज खेलने में मग्न हो गया। खेलते-खेलते ही दोनों ने आपस में अंगूठियाँ बदल लीं। राजा ने भौका देखकर पुरोहित को पता न लगे, इस प्रकार एक व्यक्ति को पुरोहित की अंगूठी देकर उसके घर भेज दिया और ब्राह्मणो को कहलाया कि "यह अंगूठी पुरोहित जी ने निशानी के लिए भेजी है / कहलवाया है कि अमुक दिन, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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