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________________ 58] [नन्दीसूत्र स्वीकार नहीं किया, क्योंकि दोनों को दो दिशाओं में जाना आवश्यक था, अतः कोई विशेषता ज्ञात नहीं होती थी। इस पर मंत्री ने दूसरे उपाय से परीक्षा लेना तय किया। अगले दिन ही मंत्री ने पुनः एक संदेश दो पतियों वाली उस स्त्री के लिये भेजा कि वह अपने पतियों को एक ही समय दो अलग-अलग गाँवों में भेजे / स्त्री ने फिर उसी प्रकार दोनों को दो गांवों में भेज दिया किन्तु कुछ समय बाद मन्त्री के द्वारा भेजे हुए दो व्यक्ति एक साथ ही उस स्त्री के पास पाए और और उन्होंने उसके दोनों पतियों को अस्वस्थता के समाचार दिये। साथ ही कहा कि जाकर उनकी सार-सम्हाल करो। __ पतियों के समाचार पाने पर जिसके प्रति उसका स्नेह कम था, उसके लिए स्त्री बोली"यह तो हमेशा ऐसे ही रहते हैं।" और दूसरे के लिए बोली-"उन्हें बड़ा कष्ट हो रहा होगा / मैं पहले उनकी ओर ही जाती हूँ।" ऐसा कहकर कह पहले पश्चिम की ओर रवाना हो गई / इस प्रकार एक पति के लिए उसका अधिक प्रम मन्त्री की औत्पत्तिकी बुद्धि से साबित हो गया और राजा बहुत सन्तुष्ट हुया / (17) पुत्र–किसी नगर में एक व्यापारी रहता था। उसकी दो पत्नियाँ थीं / एक के पुत्र उत्पन्न हुआ पर दूसरी बन्ध्या ही रही। किन्तु वह भी बच्चे को बहुत प्यार करती थी तथा उसकी देख-भाल रखती थी। इस कारण बच्चा यह नहीं समझ पाता था कि मेरी असली माता कौन सी है ? एक बार व्यापारी अपनी पत्नियों के और पुत्र के साथ देशान्तर में गया। दुर्भाग्य से मार्ग में व्यापारी की मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के पश्चात् दोनों स्त्रियों में पुत्र के लिए विवाद हो गया। एक कहती-'बच्चा मेरा है, अत: घर-बार की मालकिन मैं हैं।" दसरी कहती-- कहती.-"नहीं, पुत्र मेरा है, इसलिए पति की सम्पूर्ण सम्पत्ति की स्वामिनी मैं हूँ।" विवाद बहुत बढ़ा और न्यायालय में पहुँचा / न्यायकर्ता बहुत चक्कर में पड़ गया कि बच्चे की असली माता की पहचान कैसे करें ! किन्तु तत्काल ही उसकी प्रौत्पत्तिकी बुद्धि ने साथ दिया और उसने कर्मचारियों को आज्ञा दी __ “पहले इन दोनों में व्यापारी की सम्पत्ति बाँट दो और उसके बाद इस लड़के को प्रारी से काट कर प्राधा-आधा दोनों को दे दो।" यह आदेश पाकर एक स्त्री तो मौन रही, किन्तु दूसरी बाण-विद्ध हरिणी की तरह छटपटाती और बिलखती हुई बोल उठी---"नहीं ! नहीं !! यह पुत्र मेरा नहीं है, इसका ही है। इसे ही सौंप दिया जाय / मुझे धन-सम्पत्ति भी नहीं चाहिये / वह भी इसे ही दे दें / मैं तो दरिद्र अवस्था में रहकर दूर से ही बेटे को देखकर सन्तुष्ट रह लूगी।" __न्यायाधीश ने उस स्त्री के दुख को देखकर जान लिया कि यही बच्चे की असली माता है। इसलिये यह धन-सम्पत्ति आदि किसी भी कीमत पर अपने पुत्र की मृत्यु सहन नहीं कर सकती। परिणामस्वरूप बच्चा और साथ ही व्यापारी की सब संपत्ति भी असली माता को सौप दी गई। वन्ध्या स्त्री को उसकी धर्तता के कारण धक्के मारकर भगा दिया गया। यह न्यायाधीश की औत्पत्तिकी बुद्धि है। (18) मधु-सित्थ (मधु छत्र)–एक जुलाहे की पत्नी का आचरण ठीक नहीं था। एक बार जुलाहा किसी अन्य ग्राम को गया तो उसने किसी दुराचारी पुरुष के साथ गलत संबंध बना लिया। वहाँ उसने जाल-वृक्षों के मध्य एक मधु छत्ता देखा किन्तु उसकी ओर विशेष ध्यान दिये बिना वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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