________________ मतिज्ञान] [87 व्यन्तरी है जिसने मेरा रूप बना दिया है / " यह सुनकर पुरुष भौंचक्का रह गया। वह समझ नहीं पाया कि क्या करूँ, किन्तु रथ की गति उसने धीरे-धीरे कम कर दी। इसी बीच अगला गाँव निकट आ गया था अतः दोनों स्त्रियों का झगड़ा ग्राम-पंचायत में पहुंचाया गया। पंच ने दोनों स्त्रियों के झगड़े को सुनकर अपनी बुद्धि से काम लेते हुए दोनों को उस पुरुष से बहुत दूर खड़ा कर दिया। कहा-"जो स्त्री पहले इस पुरुष को छू लेगी उसी को इस पुरुष की पत्नी माना जायगा।" यह सुनकर असली स्त्री तो दौड़कर अपने पति को छूने का प्रयत्न करने लगी, किन्तु व्यन्तरी ने वक्रिय-शक्ति के द्वारा अपने स्थान से ही हाथ लम्बा किया और पुरुष को छू दिया / न्यायकर्ता ने समझ लिया कि यही व्यन्तरी है। व्यन्तरीको भगाकर उस पुरुष को उसकी पत्नी सौंप दी गई। यह न्यायकर्ता की प्रौत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है। (15) स्त्री-एक समय मूलदेव और पुण्डरीक दो मित्र कहीं जा रहे थे। उसी मार्ग से एक अन्य पुरुष भी अपनी पत्नी के साथ चला जा रहा था / पुण्डरीक उस स्त्री को देखकर उस पर मुग्ध हो गया तथा अपने मित्र मलदेव से बोला--"मित्र ! यदि यह स्त्री मझे मिलेगी तो मैं जीवित रहूँगा, अन्यथा मेरी मृत्यु निश्चित है।" मूलदेव यह सुनकर परेशान हो गया। मित्र का जीवन बचाने की इच्छा से उसे साथ लेकर एक अन्य पगडंडी से चलता हुया उस युगल के आगे पहुँचा तथा एक झाड़ी में पुण्डरीक को बिठाकर स्वयं पुरुष के समीप जा पहुंचा और बोला-"भाई ! मेरी स्त्री के इस समीप की झाड़ी में ही बालक पन्न हया है। अतः अपनो पत्नी को तनिक देर के लिए वहाँ भेज दो।"पुरुष ने मुलदेव को वास्तव में ही संकटग्रस्त समझा और अपनी पत्नी को झाड़ी की ओर भेज दिया। वह झाड़ी में बैठे पुण्डरीक की तरफ गई किन्तु थोड़ी देर में ही लौट कर वापिस आ गई तथा मूलदेव से हँसते हुए कहने लगी---"आपको बधाई है / बड़ा सुन्दर बच्चा पैदा हुआ है।' यह सुनकर मूलदेव बहुत शर्मिन्दा हुआ और वहाँ से चल दिया। यह उदाहरण मूलदेव और उस स्त्री की औत्पत्तिकी बुद्धि का प्रमाण है। (16) पति-किसी गाँव में दो भाई रहते थे पर उन दोनों की पत्नी एक ही थी। स्त्री बड़ी चतुर थी अत: कभी यह जाहिर नहीं होने देती थी कि अपने दोनों पतियों में से किसी एक पर उसका अनुराग अधिक है / इस कारण लोग उसकी बड़ी प्रशंसा करते थे। धीरे-धीरे यह बात राजा के कानों तक पहुँची और वह बड़ा विस्मित हुग्रा / किन्तु मन्त्री ने कहा-"महाराज ! ऐसा कदापि नहीं हो सकता। उस स्त्री का अवश्य ही एक पर प्रेम अधिक होगा।" राजा ने पूछा-'यह कैसे जाना जाए ?" मन्त्री ने उत्तर दिया-"देव ! मैं शीघ्र ही यह जानने का उपाय करूंगा।" एक दिन मन्त्री ने उस स्त्री के पास सन्देश लिखकर भेजा कि वह अपने दोनों पतियों को पूर्व और पश्चिम दिशा में अमुक-अमुक ग्रामों में भेजे / ऐसा संदेश प्राप्त कर स्त्री ने अपने उस पति को, जिस पर कम राग था, पूर्ववर्ती गाँव में भेज दिया और जिस पर अधिक स्नेह था उसे पश्चिम के गाँव में भेजा / पूर्व की ओर जाने वाले पति को जाते और आते दोनों बार सूर्य का ताप सामने रहा / पश्चिम की ओर जाने वाले के लिए सूर्य दोनों समय पीठ की तरफ था। इससे सिद्ध हुआ कि स्त्री का पश्चिम की ओर जाने वाले पति पर अधिक अनुराग था। किन्तु राजा ने इस बात को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org