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________________ 90] निन्दीसूत्र अमुक समय पर द्रमक के पास से ली हुई एक हजार सुवर्ण मुद्राओं से भरी हुई थैली, जो अमुक स्थान पर रखी है, शीघ्र ही इस व्यक्ति के साथ भिजवा देना।" __ब्राह्मणी ने पुरोहित की नामांकित अंगठी लाने वाले को थैली दे दी। सेवक ने राजा को लाकर सौंप दी / राजा ने दूसरी भी बहुत-सी थैलियाँ मंगवाई। उनके बीच में द्रमक की थैली रख दी और उसे अपने पास बुलवाया / द्रमक ने आते ही अपनी थैली पहचान ली और कहा"महाराज ! मेरी थैली यह है / " राजा ने थैली उसके मालिक को दे दी तथा पुरोहित को जिह्वा छेद कर वहाँ से निकाल दिया। यह उदाहरण राजा की औत्पत्तिकी बुद्धि का परिचायक है। (20) अङ्क–एक व्यक्ति ने किसी साहूकार के पास एक हजार रुपयों से भरी हुई नोली धरोहर के रूप में रख दी। वह देशान्तर में भ्रमण करने चला गया। उसके जाने के बाद साहूकार ने नोली के नीचे के भाग को बड़ी सफाई से काटकर उसमें खोटे रुपये भर दिये और नोली को सी दिया। कुछ समय पश्चात् नोली का मालिक लौटा और साहूकार से नोली लेकर अपने घर चला गया। घर जाकर जब उसने नोली में से रुपये निकाले तो खोटे रुपये निकले। यह देखकर वह बहुत घबराया और न्यायालय में पहुँचकर न्यायाधीश को अपना दु:ख सुनाया। न्यायाधीश ने उस व्यक्ति से पूछा--"तेरी नोली में कितने रुपये थे ?" “एक हजार" उस व्यक्ति ने उत्तर दिया। तब न्यायाधीश ने खोटे रुपये निकालकर नोली में असली रुपये भरे, केवल उतने शेष रहे जितनी जगह काटकर सी दी गई थी। न्यायकर्ता ने इससे अनुमान लगाया कि अवश्य ही इसमें खोटे रुपये डाले गये हैं / इस पर साहूकार से हजार रुपये उस व्यक्ति को दिलवाए गये तथा साहूकार को न्यायकर्ता ने यथोचित दंड देकर अपनी प्रौत्पत्तिकी बुद्धि का परिचय दिया। (21) नाणक-एक व्यक्ति ने किसी सेठ के यहाँ एक हजार सुवर्ण-मोहरों से भरी हुई थैली मुद्रित करके धरोहर रूप में रख दी और देशान्तर में चला गया। कुछ समय बीत जाने पर सेठ ने थेली में से शुद्ध सोने की मोहरें निकालकर नकलो मोहरें भर दी तथा तथा पुनः थैली सीकर मुद्रित कर दी। कई वर्ष पश्चात् जब मोहरों का स्वामी आया तो सेठ ने थैली उसे थमा दी। व्यक्ति ने अपनी थैली पहचानी और अपने नाम से मुद्रित भी देखकर घर लौट आया। किन्तु घर आकर जव मोहरें निकाली तो पाया कि थैली में उसकी असली मोहरें नहीं अपितु नकली मोहरें भरी थी। वह घबराकर सेठ के पास आया। बोला--"सेठजी ! मेरी मोहरें असली थीं किन्तु इसमें से तो नकली निकली हैं।" सेठ ने उत्तर दिया-"मैं असली नकली कुछ नहीं जानता। मैंने तो तुम्हारी थैली जैसी की तैसी वापिस कर दी है।" पर वह व्यक्ति हजार मोहरों की हानि कैसे सह सकता था। वह न्यायालय जा पहुँचा। न्यायाधीश ने दोनों के बयान लिये तथा सारी घटना समझी। उसने थैली के मालिक से पछा-."तमने किस वर्ष सेठ के पास थैली रखी थी ?" व्यक्ति ने वर्ष और दिन बता दिया। तब न्यायाधीश ने मोहरों की परीक्षा की और पाया कि भरी हुई मोहरें नई बनी थीं। वह समझ गया कि मोहरें बदली गई हैं। उसने सेठ से असली मोहरें मंगवाकर उस व्यक्ति को दिलवाई तथा दण्ड भी दिया। इस प्रकार न्यायाधीश ने अपनी प्रौत्पत्तिकी बुद्धि से सही न्याय किया। (22) भिक्षु-किसी व्यक्ति ने एक संन्यासी के पास एक हजार सोने की मोहरें धरोहर के रूप में रखीं / वह विदेश में चला गया। कुछ समय बाद लौटा और पाकर भिक्षु से अपनी धरोहर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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