SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 80] [नन्दीसूत्र यह सुनकर राजा रोहक की अलौकिक बुद्धि का चमत्कार देखकर दंग रह गया / माता को प्रणाम कर वह वापिस लौट आया और दरबार का समय होने पर रोहक को महामंत्री के पद पर नियुक्त कर दिया। इस प्रकार ये चौदह उदाहरण रोहक की औत्पत्तिकी बुद्धि के हैं / (1) भरत व शिला के उदाहरण पहले दिये जा चुके हैं। (2) पणित (प्रतिज्ञा-शर्त)—किसी समय एक भोलाभाला ग्रामीण किसान अपने गाँव से ककड़ियाँ लेकर शहर में बेचने के लिये गया / नगर के द्वार पर पहुँचते हो उसे एक धूर्त मिल गया / उस धूर्त ने उसे ठगने का विचार किया और कहा-"भाई ! अगर मैं तुम्हारी सारी ककड़ियाँ खा लतो तुम मुझे क्या दोगे?" ग्रामीण ने कहा-"अगर तुम सारी ककड़ियाँ खा लोगे तो मैं तुम्हें इस द्वार में न आ सके ऐसा लड्डू दूगा।" दोनों में यह शर्त तय हो गई तथा वहाँ उपस्थित कुछ व्यक्तियों को साक्षी बना लिया गया। नागरिक धूर्त ने अपना वचन पूरा करने के लिए ग्रामीण की ककड़ियों में से प्रत्येक को उठाया तथा थोड़ा-थोड़ा खाकर सभी को जूठी करके रख दिया। तत्पश्चात् बोला- "लो भाई ! मैंने तुम्हारी सारी ककड़ियाँ खा ली।" बेचारा ग्रामीण अांखें मल-मलकर देखने लगा कि कहीं उसे भ्रम तो नहीं हो रहा है ? किन्तु भ्रम नहीं था, ककड़ियाँ तो थोड़ी-थोड़ी खाई हुई सभी सामने पड़ी थीं। इसलिए उसने कहा"तुमने ककड़ियाँ कहाँ खाई हैं ! सब तो पड़ी हैं।" धर्त ने कहा- मैंने ककड़ियाँ खा ली हैं, इसका विश्वास अभी कराये देता हूँ।" ऐसा कहकर उसने ग्रामीण को साथ लेकर सारी ककड़ियाँ बाजार में बेचने के लिए रख दी / ग्राहक आने लगे पर ककड़ियों को देखकर सभी लौट गये, यह कहकर कि ये ककड़ियां तो खाई हुई हैं। लोगों की बातों के आधार पर नगर के धूर्त ने ग्रामीण से कहा-"देखो, सभी कह रहे हैं कि ककड़ियाँ खाई हुई हैं। अब लामो मेरा लड्डु / ' धूर्त ने साक्षियों को भी इसी प्रकार विश्वास करने के लिए बाध्य कर दिया। ग्रामीण घबराया कि धूर्त ने ककड़ियाँ खाई भी नहीं और लड्डू भी माँग रहा है / अब कैसे इतना बड़ा लड्डू इसे दू? भयभीत होकर उसने धूर्त को रुपया देकर पीछा छुड़ाना चाहा। वह उसे एक रुपया देने लगा, न लेने पर दो और इसी प्रकार सौ रुपये तक आ गया, किन्तु धूर्त ने रुपया लेने से इन्कार कर दिया / वह लड्डू लेने की ही भाँग करता रहा / हारकर ग्रामीण ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए कुछ समय की मांग की और किसी ऐसे व्यक्ति को खोजने लगा जो उसे इस संकट से उबारे। आखिर उसे एक दूसरा धूर्त मिल गया जिसने चुटकियों में ही उसकी समस्या हल कर देने का आश्वासन दिया। उसी के कथनानुसार ग्रामीण ने बाजार जाकर एक छोटा सा लड्डू खरीदा। तत्पश्चात् वह धूर्त अन्य साक्षियों को बुला लाया / सबके आ जाने पर उसने लड्डू को नगर-द्वार के बाहर रख दिया और पुकारने लगा—'अरे लड्डू ! चलो, प्रो लड्डू, इधर इस दरवाजे में आयो।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy