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________________ मतिज्ञान 1 यव बकरी के उदर में संवर्तक नामक एक विशेष प्रकार की वायु होती है, उसी के कारण मिंगनियां गोल-गोल हो जाती हैं।" यह कहकर रोहक सो गया। (12) पत्र-रात के तीसरे प्रहर में राजा ने फिर पूछ लिया ...."रोहक, जाग रहा है ?" रोहक अविलंब बोल उठा-"जाग रहा हूँ स्वामी !'' राजा के फिर यह पूछने पर कि क्या सोच रहा है, रोहक ने कहा हैं कि पीपल के पत्ते का डंठल बड़ा या शिखा?" राजा संशय में पड़ गया और रोहक से ही उसका निवारण करने के लिये कहा / रोहक ने उत्तर दिया- "जब तक शिखा का भाग नहीं सूखता तब तक दोनों तुल्य होते हैं।" उत्तर देकर राजा के सोने के पश्चात् वह भी सो गया। (13) खाडहिला (गिलहरी) रात्रि का चतुर्थ प्रहर चल रहा था कि अचानक राजा ने रोहक को फिर पुकार लिया। रोहक जाग ही रहा था। राजा ने पूछा--'क्या सोच रहा है ?" रोहक बोला—“सोच रहा हूँ कि गिलहरी की पूछ उसके शरीर से बड़ी होती है या छोटी ?" राजा ने इसका भी निर्णय उसी से पूछा / रोहक बोला-"देव, दोनों बराबर होते हैं।" उत्तर देकर वह पुनः सो गया। (14) पंच पियरो (पाँच पिता)-रात्रि व्यतीत हो गई / सूर्योदय से पूर्व जब मंगलवाद्य बजने लगे, राजा जाग गया किन्तु रोहक प्रगाढ निद्रा में सो रहा था / पुकारने पर जब वह नहीं जागा तो राजा ने अपनी छड़ी से उसे कुछ कौंचा / रोहक तुरन्त जाग गया। राजा ने कौतूहलवश पूछ लिया—'क्यों रोहक, अब क्या सोच रहा है ?' ___ इस बार रोहक ने बड़ा अजीब उत्तर दिया। बोला-'महाराज ! मैं सोच रहा हूँ कि आपके पिता कितने हैं ?' रोहक की बात सुनकर राजा चक्कर में पड़ गया किन्तु उसकी बुद्धि का कायल होने के कारण विना क्रोध किये उसी से प्रश्न किया—'तुम्ही बताओ मैं कितनों का पुत्र हूँ ?' रोहक ने उत्तर दिया-'महाराज! आप पाँच से पैदा हुए हैं। एक तो वैश्रवण से, क्योंकि आप कुबेर के समान उदारचित्त हैं / दूसरे चाण्डाल से, क्योंकि दुश्मनों के लिए आप चाण्डाल के समान क्रर हैं। तीसरे धोबी से, जसे धोबी गीले कपडं को भली-भांति निचोड़कर, सारा पानी निकाल देता है, उसी तरह अाप भी राजद्रोही और देशद्रोहियों का सर्वस्व हर लेते हैं। चौथे बिच्छु से, क्योंकि बिच्छू डंक मारकर दूसरों को पीड़ा पहुँचाता है, वैसे ही मुझ निद्राधीन बालक को आपने छड़ी के अग्रभाग से कौंचकर कष्ट दिया है। पांचवें, आप अपने पिता से पैदा हुए हैं, क्योंकि अपने पिता के समान ही आप भी न्यायपूर्वक प्रजा का पालन कर रहे हैं।' रोहक की बातें सुनकर राजा अवाक रह गया। प्रात: नित्यक्रिया से निवृत्त होकर वह अपनी माता को प्रणाम करने गया तथा उनसे रोहक की कही हुई सारी बातें कह दी। राजमाता ने उत्तर दिया-"पुत्र ! विकारी इच्छा से देखना ही यदि तेरे संस्कारों का कारण हो तो ऐसा अवश्य हुआ। जब तू गर्भ में था, तब मैं एक दिन कुबेर की पूजा करने गई थी 1 कुबेर की सुन्दर मूत्ति को देखकर तथा वापिस लौटते समय मार्ग में एक धोबी और एक चाण्डाल को देखकर मेरी भावना विकृत हुई। इसके बाद घर आने पर एक बिच्छू-युगल को रति-क्रीड़ा करते देखकर भी मन में कुछ विकारी भावना पैदा हुई / वस्तुतः तो तुम्हारे जनक जगत्प्रसिद्ध पिता एक ही हैं।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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