SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निन्दीसूत्र पक्ष के बाद गांववालों ने मेढ़े को लौटा दिया। राजा ने उसका वजन करवाया तो वह बराबर उतना ही निकला जितना गाँव भेजे जाने के समय था। राजा ने इस घटना के पीछे भी रोहक की ही चतुराई जानकर उसकी सराहना की। (4) कुक्कुट-कुछ दिनों के अनन्तर राजा ने पुन: रोहक की परीक्षा लेने के लिए एक कुक्कुट-अर्थात् मुर्गा उसके गाँव भेज दिया / मुर्गा लड़ना ही नहीं जानता था, फिर भी कहलवाया कि इसे अन्य किसी मुर्गे के बिना ही लड़ाकू बनाया जाय / गाँववाले इस बार भी घबराए कि अन्य मुर्गे के सामने हुए बिना यह लड़ना कैसे सीखेगा? पर रोहक ने यह समस्या भी हल की। एक बड़ा तथा मजबूत दर्पण मंगवाकर मुर्गे के सामने रखवा दिया। इस दर्पण में अपने प्रतिबिम्ब को ही अपना प्रतिद्वन्द्वी समझकर मुर्गा धीरे-धीरे उससे लड़ने का प्रयत्न करने लगा। कुछ ही समय में लड़ाका बन गया। राजा के पास वापस मुर्गा भेजा गया और जब राजा ने उसे अन्य किसी मुर्गे के बिना ही लड़ते देखा तो रोहक की बुद्धि पर दंग होते हुए अतीव प्रसन्नता प्रकट की। (5) तिल-उक्त घटना के कुछ दिन पश्चात् राजा ने रोहक की और परीक्षा लेने के लिए उसके गांववालों को दरबार में बुलाकर आज्ञा दी-'तुम्हारे समक्ष तिलों का यह एक ढेर है, इसे बिना गिने ही बतलाओ कि इसमें कितने तिल हैं ? यह भी ध्यान रखना कि संख्या बताने में अधिक विलम्ब न हो।' राजा की यह अनोखी आज्ञा सुनकर लोग किकर्तव्यविमूढ हो गए। उन्हें कुछ भी समझ में नहीं पाया कि अब क्या करें? कैसे बिना गिने ही तिलों की संख्या बताएँ ? पर उन्हें रोहक का ध्यान आया और दौड़े-दौड़े वे उसी के पास पहुँचे। रोहक गाँववालों की बात अर्थात् राजाज्ञा सुन कर कुछ क्षण मौन रहा, फ़िर बोला-आप लोग जाकर महाराज से कह देना कि हम गणित के विद्वान् तो नहीं हैं, फिर भी तिलों की संख्या उपमा के द्वारा बताते हैं / वह इस प्रकार है---"इस उज्जयिनी नगरी के ऊपर बिल्कुल सीध में प्राकाश में जितने तारे हैं, ठीक उतनी ही संख्या इस ढेर में तिलों की है।" ___ ग्रामीण लोगों ने प्रसन्न होते हुए राजा के पास जाकर यही कह दिया / राजा ने रोहक की बुद्धिमत्ता देखकर दाँतों तले अंगुली दबाई और मन ही मन प्रसन्न हुआ। (6) बालुक---कुछ दिन के बाद राजा ने पुनः रोहक की परीक्षा करने के लिए उसके गांव वालों को आदेश दिया कि–'तुम्हारे गाँव के आसपास बढ़िया रेत है। उस बालू रेत की एक डोरी बनाकर शीघ्र भेजो।' बेचारे नट घबराए, भला बाल रेत की डोरी कैसे बट सकती थी ? पर वहाँ रोहक जो था, उसने चुटकी बजाते ही उन्हें मुसीबत से उबार लिया / उसी के कथनानुसार गाँववालों ने जाकर राजा से प्रार्थना की--"महाराज ! हम तो नट हैं, बाँसों पर नाचना ही जानते हैं / डोरी बनाने का काम कभी किया नहीं। फिर भी प्रापकी प्राज्ञा का पालन करने का प्रयत्न अवश्य करेंगे। कृपा करके आप अपने भण्डार में से रेत की बनी हुई डोरी का एक नमूना दिलवादें / " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy