________________ 74] [नन्दीसूत्र "पिताजी ! देखिये वह पुरुष भागा जा रहा है !" भरत नट ने क्रोधित होकर अपनी तलवार उठाई और उस लम्पट पुरुष को मारने के लिये दौड़ा। रोहक से उसने पूछा--"कहाँ है वह दुष्ट ?" इस पर रोहक ने अपनी ही छाया की ओर इंगित करके कहा-~-'यह रहा / ' भरत दट बहुत लज्जित हुआ यह सोचकर कि मैंने इस बालक के कहने से पत्नी को दुराचारिणी समझ लिया। मन ही मन पश्चात्ताप करते हुए वह अपनी पत्नी से पूर्ववत् मधुर व्यवहार रखने लगा। फिर भी बुद्धिमान् रोहक ने विचार किया-विमाता, विमाता ही होती है / कहीं मेरे द्वारा किये गये व्यवहार से कुपित रहने के कारण यह किसी दिन मुझे विष आदि के प्रयोग से मार न डाले।' यह सोचकर वह छाया की तरह पिता के साथ रहने लगा। उन्हीं के साथ खातापीता, सोता था। एक दिन किसी कार्यवश भरत को उज्जयिनी जाना था। रोहक भी पिता के साथ ही गया। नगरी का वैभव और सौन्दर्य देखकर वह मुग्ध-सा हो गया और वहाँ घूम-घूमकर उसके नक्शे को अपने मस्तिष्क में बिठाने लगा। कुछ समय पश्चात् जब वह पिता के साथ अपने गाँव की ओर लौटा तब नगरी के बाहर क्षिप्रा नदी के तट तक पाते ही भरत को किसी भूली हुई वस्तु का स्मरण पाया। अत: रोहक को नदी के तट पर बिठाकर वह पुन: नगरी की ओर लौट गया। रोहक नदी के तौर पर रेत से खेलने लगा। अकस्मात् ही उसे न जाने क्या सूझा कि उसने रेत पर उज्जयिनी का महल समेत हुबहू नक्शा बना दिया। संयोगवश उसी समय नगरी का राजा प्रा गया। चलते हए वह रोहक के बनाए हए नक्शे के समीप पाया और उस पर चलने को हुआ / उसी क्षण रोहक ने टोकते हुए कहा-"महाशय ! इस मार्ग से मत जाओ।" राजा चौंककर बोला-"क्यों क्या बात है ?" रोहक ने उत्तर दिया-"यहाँ राजभवन है, इसमें कोई व्यक्ति बिना इजाजत के प्रवेश नहीं कर सकता।" राजा ने यह सुनते ही कौतुहलपूर्वक रोहक द्वारा बनाया हुआ अपनी नगरी का नक्शा देखा / देखकर हैरान रह गया और सोचने लगा-'यह छोटा-सा बालक कितना बुद्धिमान है जिसने नगरी में घूमकर ही इसका इतना सुन्दर और सही नक्शा बना लिया। उसी क्षण उसके मन में यह विचार भी पाया कि-'मेरे चार सौ निन्यानवे मंत्री हैं। अगर इनसे भी ऊपर इस बालक के समान एक अतीव कुशाग्र बुद्धि वाला महामंत्री हो तो राज्यकार्य कितने सुन्दर ढंग से चले / इसके बुद्धिबल के कारण अन्य बल न्यून होने पर भी मैं निष्कंटक राज्य कर सकूगा तथा किसी भी शत्रु पर सहज हो विजय पा लगा। किन्तु पहले इसकी परीक्षा कर लेनी चाहिये। यह विचार करके राजा रोहक का, उसके पिता का तथा गांव का नाम पूछकर नगर की ओर चल दिया। इधर अपने पिता के लौटकर आने पर रोहक भी अपने गाँव की ओर रवाना हो गया। राजा भूला नहीं और कुछ समय बाद ही उसने रोहक की परीक्षा लेना प्रारंभ कर दिया। (2) शिला---राजा ने सर्वप्रथम रोहक के ग्रामवासियों को बुलाकर कहा---'तुम लोग मिलकर एक ऐसा मंडप बनायो जो राजा के योग्य हो और उसका आच्छादन गाँव के बाहर पड़ी हुई महाशिला हो / किन्तु शिला को वहाँ से उखाड़ा न जाय / ' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org