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________________ मतिज्ञान [73 प्रोत्पत्तिकी बुद्धि के उदाहरण ४६-भरह-सिल-मिढ-कुक्कुड-तिल-बालुय-हत्थि-अगड-बणसंडे / पायस-अइया-पत्ते, खाडहिला-पंचपियरो य // 1 // भरह-सिल-पणिय-रुक्खे, खड्डग-पड-सरड-काय-उच्चारे / गय-घयण-गोल-खंभे-खुड्डग-मग्गिस्थि-पइ-पुत्ते // 2 // महसित्थ-मदि-अंके नाणए भिक्खु चेडग-निहाणे / सिक्खा य प्रत्थसत्थे इच्छा य महं सयसहस्से // 3 // विवेचन--गाथाओं का अर्थ विवेचन से ही समझना चाहिए। नागमों में तथा अन्य ग्रन्थों में उन बुद्धिमानों का नाम विथ त रहा है जिन्होंने अपनी तत्काल उत्पन्न बुद्धि या सूझ-बूझ से कही हुई बातों से अथवा किये गये अद्भुत कृत्यों से लोगों को चमत्कृत किया है। ऐसे व्यक्तियों में राजा, मंत्री, न्यायाधीश, संत-महात्मा, शिष्य, देव, दानव, कलाकार, बालक, नर-नारी आदि के वर्णन उल्लेखनीय होते हैं और उनके वर्णन इतिहास, कथानक, दृष्टान्त, उदाहरण या रूपक आदि में मिलते हैं। आजकल यद्यपि अनेकों दृष्टांत ऐसे पाये जा सकते हैं जो प्रोत्पत्तिकी, वैनयिकी, कर्मजा एवं पारिणामिकी बुद्धि से संबंधित है, किन्तु यहाँ पर सूत्रगत उदाहरणों का ही उल्लेख किया जाता है: (1) भरत-उज्जयिनी नगरी के निकट नटों के एक ग्राम में भरत नामक नट रहता था। उसकी पत्नी का देहान्त हो गया और वह रोहक नामक एक पुत्र को छोड़ गई। बालक बड़ा होनहार और बुद्धिमान् था, किन्तु छोटा था, अतः उसकी व अपनी देखभाल के लिए भरत ने दूसरा विवाह कर लिया। रोहक को विमाता दुष्ट स्वभाव की स्त्री थी। वह उसके प्रति दुर्व्यवहार किया करती थी। एक दिन रोहक से रहा नहीं गया तो बोला-'माताजी ! आप मुझसे अच्छा व्यवहार नहीं करती, क्या यह आपके लिए उचित है ?' रोहक के यह शब्द सुनते ही विमाता प्रागबबूला होती हुई बोली 'दुष्ट ! छोटे मुह बड़ी बात कहता है ! जा मेरे दुर्व्यवहार के कारण जो तुझसे बने कर लेना / ' यह कहकर वह अपने कार्य में लग गई। रोहक ने विमाता के वचन सुने तो उससे बदला लेने की ठान ली और उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा करने लगा। समय आया और एक दिन जब वह अपने पिता के पास सोया हुया था, अचानक उठकर बोला-'पिताजी ! कोई पुरुष दौड़कर जा रहा है।' भरत नट ने यह सुनकर सोचा कि मेरी पत्नी सदाचारिणी नहीं है। परिणामस्वरूप वह पत्नी से विमुख हो गया तथा उससे बोलना भी बन्द कर दिया। पति के रंग-ढंग देखकर रोहक की विमाता समझ गई कि किसी प्रकार रोहक ने ही अपने पिता को मेरे विरुद्ध भड़काया है। उसकी अक्ल ठिकाने पाई और वह रोहक से बोली- 'बेटा ! मुझसे भूल हुई / भविष्य में मैं तेरे साथ मधुर और अच्छा व्यवहार रखूगी / ' रोहक का क्रोध भी शान्त हो गया और वह अपने पिता के भ्रम-निवारण का अवसर खोजने लगा। एक दिन चाँदनी रात में उसने अंगुलो से अपनी ही छाया दिखाते हुए पिता से कहा-- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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