________________ पंचम अध्ययन : अकाममरणीय अध्ययन-सार मरण के दो प्रकारों का निरूपण अकाममरणः स्वरूप, अधिकारी, स्वभाव और दुष्परिणाम सकाममरणः स्वरूप, अधिकारी-अनधिकारी एवं सकाममरणोत्तर स्थिति सकाममरण प्राप्त करने का उपदेश और उपाय छठा अध्ययन : निर्ग्रन्थीय अध्ययन-सार अविद्या : दुःखजननी और अनन्तसंसारभ्रमणकारिणी अविद्या के विविध रूपों को त्यागने का उपदेश अविद्याजनित मान्यताएँ विविध प्रमादों से बचकर अप्रमत्त रहने की प्रेरणा अप्रमत्तशिरोमणि भगवान महावीर द्वारा कथित अप्रमादोपदेश सप्तम अध्ययन : उरभ्रीय or 0 0 0 0 0 110 113 115 117 120 अध्ययन-सार क्षणिक सुखों के विषय में अल्पजीवी परिपृष्ट मेंढे का रूपक नरकाकांक्षी एवं मरणकाल में शोकग्रस्त जीव की दशा मेंढे के समान अल्पकालिक सुखों के लिए दीर्घकालिक सुखों को हारने वाले के लिए दो दृष्टान्त तीन वणिको का दृष्टान्त मनुष्यभव सम्बन्धी कामभोगों की दिव्य कामभोगों के साथ तुलना वाल और पण्डित का दर्शन तथा पण्डितभाव स्वीकार करने की प्रेरणा अष्टम अध्ययन : कापिलीय अध्ययन-सार दुःखबहुल संसार में दुर्गतिनिबारक अनुष्ठान की जिज्ञासा कपिल मुनि द्वारा पान मौ चोरों को अनासक्ति का उपदेश हिमा से सर्वथा विरत होने का उपदेश रसामक्ति से दूर रह कर एषणाममितिपूर्वक पाहारग्रहण--सेवन का उपदेश ममाधियोग से भ्रष्ट श्रमण और उसका दुरगामी दुष्परिणाम दुष्पूर लोभवृत्ति का स्वरूप और त्याग की प्रेरणा स्त्रियों के प्रति प्रामक्तित्याग का उपदेश नवम अध्ययन : नमिप्रव्रज्या अध्ययन-सार नमिराज: जन्म से अभिनिष्क्रमण तक 123 125 125 mmm [ 98 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org