________________ विषयानुक्रम प्रथम अध्ययन-विनयसूत्र विषये अध्ययनसार विनयनिरूपण-प्रतिज्ञा अविनीत दुःशील का स्वभाव विनय का उपदेश और परिणाम अनुशासनरूप विनय की दशसूत्री अविनीत और विनीत शिष्य का स्वभाव विनीत का बाणीविवेक आत्मदमन और परदमन का अन्तर एवं फल अनाशतना विनय के मूल मन्त्र विनीत शिष्य को सूत्र-अर्थ-तदुभय बताने का विधान विनीत शिष्य द्वारा करणीय भाषाविवेक अकेली नारी के साथ अवस्थान-संलाप-निषेध विनीत के लिए अनुशासन-स्वीकार का विधान विनीत की गुरुसमक्ष बैठने की विधि यथाकाल चर्या का निर्देश भिक्षाग्रहगा एवं प्राहारमेक्न को विधि विनीत और अविनीत शिष्य के स्वभाव एवं याचरण से गुरु प्रसन्न और अप्रसन्न विनीत को लौकिक और लोकोत्तर लाभ द्वितीय अध्ययन-परीषह-प्रविभक्ति अध्ययनसार परीषह और उनके प्रकार-संक्षेप में भगवत्प्ररूपित परीषहविभाग-कथन की प्रतिज्ञा (1) क्षुधापरीषह (2) पिपासापरीपह (3) शीतपरोषह (4) उष्णपरीषह (5) दंशमशकपरीषह [ 96 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org