________________ छत्तीसवाँ अध्ययन : जीवाजीवविभक्ति। [687 उपसंहार 268. इह पाउकरे बुद्ध नायए परिनिव्वुए। छत्तीसं उत्तरज्झाए भवसिद्धीयसंमए / —त्ति बेमि [268] इस प्रकार भवसिद्धिक (-भव्य) जीवों को अभिप्रेत (सम्मत) छत्तीस उत्तराध्ययनों (-उत्तम अध्यायों) को प्रकट करके बुद्ध (समग्र पदार्थों के ज्ञाता) ज्ञातवंशीय भगवान महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए। -ऐसा मैं कहता हूँ। ॥जीवाजीवविभक्ति: छत्तीसवाँ अध्ययन समाप्त / / // उत्तराध्ययनसूत्र समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org