________________ 676] [उत्तराध्ययनसूत्र [227] लान्तक-देवों की उत्कृष्ट प्रायुस्थिति चौदह सागरोपम की और जघन्य दस सागरोपम की है। 228. सत्तरस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे / महासुक्के जहन्नेणं चउद्दस सागरोवमा // [228] महाशुक्र-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति सत्तरह सागरोपम की और जघन्य चौदह सागरोपम की है। 226. अट्ठारस सागराई उक्कोसेण ठिई भवे / सहस्सारे जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमा / / [226[ सहस्रार-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति अठारह सागरोपम की और जघन्य सत्तरह सागरोपम की है। 230. सागरा अउणवीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे / प्राणयम्मि जहन्नेणं अट्ठारस सागरोवमा // [230] आनत-देवों की उत्कृष्ट प्रायुस्थिति उन्नीस सागरोपम की और जघन्य अठारह सागरोपम की है। 231. बीसं तु सागराइं उबकोसेण ठिई भवे / पाणयम्मि जहन्नेणं सागरा अउणवीसई // [231] प्राणत-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति वीस सागरोपम की और जघन्य उन्नीस सागरोपम की है। 232. सागरा इक्कवीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे / प्रारणम्मि जहन्नेणं वीसई सागरोवमा / / [232] आरण-देवों की उत्कृष्ट प्रायुस्थिति इक्कीस सागरोपम की है और जघन्य बीस सागरोपम की है। 233. वावीसं सागराई उक्कोसेण ठिई भवे / ___ अच्चुयम्मि जहन्नेणं सागरा इक्कवीसई // [233] अच्युत-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति बाईस सागरोपम की और जघन्य इक्कीस सागरोपम की है। 234. तेवीस सागराई उक्कोसेण ठिई भवे / पढमम्मि जहन्नेणं बावीसं सागरोवमा // [234] प्रथम ग्रेवेयक-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति तेईस सागरोपम की, जघन्य बाईस सागरोपम की है। 235. चउवीस सागराई उक्कोसेण ठिई भवे / बिइयम्मि जहन्नेणं तेवीसं सागरोवमा // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org