________________ छत्तीसवां अध्ययन : जीवाजीवविमक्ति] [675 __220. पलिपोवममेगं तु उक्कोसेण ठिई भवे / __वन्तराणं जहन्नेणं दसवाससहस्सिया // ___ [220] व्यन्तरदेवों को उत्कृष्ट प्रायुस्थिति एक पल्योपम की और जघन्य दस हजार वर्ष 221. पलिप्रोवमं एगं तु वासलक्खेण साहियं / पलिओवमट्ठभागो जोइसेसु जहनिया / / [221] ज्योतिष्कदेवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम को और जघन्य पल्योपम का आठवाँ भाग है। 222. दो चेव सागराइं उक्कोसेण वियाहिया। सोहम्मंमि जहन्नेणं एगं च पलिओवमं / / ___ [222] सौधर्म-देवों की उत्कृष्ट प्रायुस्थिति दो सागरोपम को और जघन्य एक पल्योपम की है। (222] सौधर्म 223. सागरा साहिया दुन्नि उक्कोसेण वियाहिया। ईसाणम्मि जहन्नेणं साहियं पलिओवमं / / [223] ईशान-देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति किञ्चित् अधिक दो सागरोपम और जघन्य किञ्चित् अधिक एक पल्योपम है। 224. सागराणि य सत्तेव उक्कोसेण ठिई भवे / __ सणंकुमारे जहन्नेणं दुनि ऊ सागरोवमा // [224] सनत्कुमार-देवों की उत्कृष्ट प्रायुस्थिति सात सागरोपम की और जघन्य दो सागरोपम की है। 225. साहिया सागरा सत्त उक्कोसेण ठिई भवे / माहिन्दम्मि जहन्नेणं साहिया दुन्नि सागरा // [225] माहेन्द्रकुमार-देवों की उत्कृष्ट प्रायुस्थिति किञ्चित् अधिक सात सागरोपम की और जघन्य किञ्चित् अधिक दो सागरोपम की है। 226. बस चेव सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे / बम्भलोए जहन्नेणं सत्त ऊ सागरोवमा / [226] ब्रह्मलोक-देवों की प्रायुस्थिति उत्कृष्ट दस सागरोपम की और जघन्य सात सागरोपम की है। 227. चउद्दस सागराई उक्कोसेण ठिई भवे / लन्तगम्मि जहन्नेणं दस ऊ सागरोवमा / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org