________________ छत्तीसवां अध्ययन: जीवाजीवविभक्ति] [673 देव-निरूपण 204. देवा चउन्विहा वुत्ता ते मे कित्तयओ सुण / भोमिज्ज-वाणमन्तर-जोइस-वेमाणिया तहा। [204] देव चार प्रकार के कहे गए हैं-भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक / मैं उनके विषय में कहता हूँ, सुनो। 205. दसहा उ भवणवासी अट्ठहा वणचारिणो। पंचविहा जोइसिया दुविहा वेमाणिया तहा // [205] भवनवासी देव दस प्रकार के हैं, वाणव्यन्तर देव आठ प्रकार के हैं, ज्योतिष्क देव पांच प्रकार के हैं और वैमानिक देव दो प्रकार के हैं। 206. असुरा नाग-सुवण्णा विज्जू अग्गो य आहिया। दीवोदहि-दिसा वाया थणिया भवणवासिणो॥ [206] असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिककुमार, वायुकुमार और स्तनितकुमार, ये दस भवनवासी देव हैं। 207. पिसाय-भूय-जक्खा य रक्खसा किन्नरा य किंपुरिसा / महोरगा य गन्धव्वा अविहा वाणमन्तरा // [207] पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस किन्नर, किम्पुरुष, महोरग और गन्धर्व, ये आठ प्रकार के वाणव्यन्तर देव हैं। 208. चन्दा सूरा य नक्खत्ता गहा तारागणा तहा। दिसाविचारिणो चेव पंचहा जोइसालया। 2i08] चन्द्रमा, सूर्य, नक्षत्र, ग्रह और तारागण, ये पांच प्रकार के ज्योतिष्क देव हैं / ये पांच दिशाविचारी (अर्थात्-मेरुपर्वत की प्रदक्षिणा करते हुए भ्रमण करने वाले) ज्योतिष्क देव हैं। 209. वेमाणिया उजे देवा दुविहा ते वियाहिया। कप्पोवगा य बोद्धव्वा कप्पाईया तहेव य॥ 206] वैमानिक देव दो प्रकार के कहे गए हैं--कल्पोपग (कल्प-सहित---इन्द्रादि के रूप में कल्प अर्थात् आचार-मर्यादा एवं शासन-व्यवस्था वाले) और कल्पातीत (पूर्वोक्त कल्पमर्यादाओं से रहित)। 210. कप्पोवगा बारसहा सोहम्मीसाणगा तहा / सणकुमार-माहिन्दा बम्भलोगा य लन्तगा। 211. महासुक्का सहस्सारा आणया पाणया तहा / आरणा अच्चुया चेव इइ कप्पोवगा सुरा // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org