SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 765
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [उत्तराध्ययनसूत्र 96. साहारणसरीरा उ गहा ते पकित्तिया / आलुए मूलए चेव सिंगबेरे तहेव य // [16] साधारणशरीरी वनस्पतिकाय के जीव अनेक प्रकार के हैं--प्रालु, मूल (मूली आदि), शृंगबेर (अदरक)-- 97. हिरिली सिरिली सिस्सिरिली जावई केय-कन्दली। पलंदू-लसणकन्दे य कन्दली य कुडुबए / 98. लोहि णीहू य थिहू य कुहगा य तहेव य / कण्हे य वज्जकन्दे य कन्दे सूरणए तहा // 99. अस्सकण्णी य बोद्धव्वा सीहकण्णी तहेव य / मुसुण्ढी य हलिद्दा य ऽणेगहा एवमायओ॥ [67-68-66] हिरिलीकन्द, सिरिलीकन्द, सिस्सिरिलीकन्द, जावईकन्द, केद-कदलीकन्द, पलाण्डु (प्याज), लहसुन, कन्दली, कुस्तुम्बक / लोही, स्निहू, कुहक, कृष्ण वज्रकन्द और सूरणकन्द, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, मुसुडी तथा हरिद्रा (हल्दी) इत्यादि-अनेक प्रकार के जमीकन्द हैं। 100. एगविहमणाणत्ता सुहुमा तत्थ वियाहिया। सुहमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य बायरा // [100] सूक्ष्म वनस्पतिकाय के जीव एक ही प्रकार के हैं, उनके अनेक भेद नहीं हैं। सूक्ष्म वनस्पतिकाय के जीव समग्र लोक में और बादर वनस्पतिकाय के जीव लोक के एक भाग में व्याप्त हैं। 101. संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य / ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य // |1.1] वे प्रवाह की अपेक्षा से अनादि-अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादि-सान्त हैं / 102. दस चेव सहस्साई वासाणुक्कोसिया भवे / वणप्फईण आउं तु अन्तोमुहुत्तं जहन्नगं // [102] वनस्पतिकायिक जीवों की (एक भव की) आयु-स्थिति उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है। 103. अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुत्तं जहन्नयं / कायठिई पणगाणं तं कायं तु अमुचनो // [103) वनस्पतिकाय की कायस्थिति उत्कृष्ट अनन्तकाल की और जघन्य अन्तर्मुहुर्त की है / वनस्पतिकाय को न छोड़ कर लगातार वनस्पति (पनकोपलक्षित) काय में ही पैदा होते रहना कायस्थिति है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy