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________________ न जच्चा ब्राह्मणो होति, न जच्चा होति अब्राह्मणो। कम्मुना ब्राह्मणो होति, कम्मुना होति अब्राह्मणो / / कस्सको कम्मुना होति, सिप्पिको होति कम्मुना / वाणिजो कम्मुना होति, पेस्सिको होति कम्मुना / / (सुत्तनिपात, महा. 9657,58) न जच्चा वसलो होति, न जच्चा होति ब्राह्मणो / कम्मुना बसलो होति, कम्मूना होति ब्राह्मणों / / " (सुत्तनिपात उर. 721,27) समाचारी : एक विश्लेषण छब्बीसवें अध्ययन में समाचारी का निरूपण है। समाचारी जैन संस्कृति का पारिभाषिक शब्द है। शिष्ट जनों के द्वाग किया गया क्रिया-कलाप समाचारी है।४४ उत्तराध्ययन में ही नहीं, भगवती, 5 स्थानांग४६ आदि अन्य आगमों में भी समाचारी का वर्णन मिलता है। आवश्यकनियुक्ति में भी ममाचारी पर चिन्तन किया गया है दृष्टिवाद के नौवें पूर्व की प्राचार नामक तृतीय वस्तु के बीमवें प्रोघप्राभूत में समाचारी के सम्बन्ध में बहुत ही विस्तार के साथ निरूपण था। पर वह वर्णन सभी श्रमणों के लिए सम्भव नहीं था। जो महान् मेधावी सन्त होते थे, उनका अध्ययन करते थे। अत: आगम-मर्मज्ञ प्राचार्यों ने सभी सन्तों के लाभार्थ प्रोधनियुक्ति प्रादि ग्रन्थों का निर्माण किया। प्रवचनसारोद्धार, धर्मसंग्रह आदि उत्तरवर्ती ग्रन्थों में भी समाचारी का निरूपण है / उपाध्याय यशोविजयजी ने समाचारीप्रकरण नामक स्वतंत्र ग्रन्थ की रचना की है। श्रमणाचार के वृतात्मक प्राचार और व्यवहारात्मक प्राचार ये दो भेद हैं। महाव्रत वृत्तात्मक प्राचार है और व्यवहारात्मक प्राचार समाचारी है। समाचारी के प्रोध समाचारी और पदविभाग समाचारी ये दो भेद हैं। प्रथम समाचारी का अन्तर्भाव धर्मकथानुयोग में और दूसरी समाचारी का अन्तर्भाव चरणकरणानुयोग में किया गया है / आवश्यकनियुक्ति में समाचारी के प्रोघसमाचारी, दशविध समाचारी और पदविभाग समाचारो ये तीन प्रकार बतलाए हैं। प्रोधसमाचारी का प्रतिपादन ओघनियुक्ति में किया गया है और पदविभाग समाचारी छेदमूत्र में वणित है। दिगम्बरग्रन्थों में समाचारी के स्थान पर 'समाचार' और 'सामाचार' ये दो शब्द आये हैं। प्राचार्य वट्टकेर ने उसके चार अर्थ किये हैं-(१) ममता का प्राचार (2) मम्यक् प्राचार (3) मम प्राधार (4) समान प्राचार / 247 श्रमण-जीवन में दिन-रात में जितनी भी प्रवत्तियाँ होती हैं, वे सभी ममाचारी में अन्तर्गत हैं। समाचारी संघीय जीवन जीने की श्रेष्ठतम कला है। ममाचारी से परस्पर एकता की भावना विकसित होती है, जिसमे संघ को बल प्राप्त होता है। 288. उत्तराध्ययन, अध्ययन 26 245. भगवतीसूत्र, 257 246. स्थानांग 10, सूत्र 789 287. ममदा सामाचारो, मम्माचारो समो व प्राचारो। मन्वेमि मम्माण समाचारो हु प्राचारो॥ --मूलाचार, गा. 123 [ 75 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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