________________ 630] [उत्तराध्ययनसूत्र [21] निर्मम, निरहंकार, वीतराम और अनाश्रय मुनि केवलज्ञान को सम्प्राप्त कर शाश्वत परिनिर्वाण को प्राप्त होता है / विवेचन--निज्जहिऊण आहारं-संलेखनाक्रम से चतुर्विध पाहार का परित्याग कर / बिना संलेखना किए सहसा:यावज्जीवन पाहार त्याग करने पर धातुओं के परिक्षीण होने पर अन्तिम समय प्रार्तध्यान होने की सम्भावना है। पह : विशेषार्थ-प्रभु-वीर्यान्तराय के क्षय से विशिष्ट सामर्थ्यवान् होकर।' ॥अनगारमार्गगति : पैंतीसवाँ अध्ययन समाप्त / 1. बृहद्वृत्ति, अ. रा. कोष, भा. 7, पृ. 282 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org