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________________ प्रस्तुत अध्ययन में ममितियों और गुप्तियों का सम्यक् निरूपण हुअा है ! ब्राह्मण--- पच्चीसवें अध्ययन में यज्ञ का निरूपण है। यज्ञ वैदिक संस्कृति का केन्द्र है। पापों का नाश, ग्रों का महार, विपत्तियों का निवारण, राक्षसों का विध्वंस, व्याधियों का परिहार, इन मव की मफलता के लिये यज्ञ आवश्यक माना गया है / क्या दीर्घायु, क्या समृद्धि, क्या अमरत्व का साधन सभी यज्ञ से उपलब्ध होते हैं। ऋग्वेद में ऋषि ने कहा यज्ञ इस उत्पन्न होने वाले संसार की नाभि है। उत्पत्तिप्रधान है। देव तथा ऋषि यज्ञ से समुत्पन्न हए / यज्ञ से ही ग्राम और अरण्य के पशृनों की सृष्टि हुई / अश्व, गाएं, भेड़ें, अज, वेद ग्रादि का निर्माण भी यज्ञ के कारण ही हुआ / यज्ञ हो देवों का प्रथम धर्म था / 243 इस प्रकार ब्राह्मण-परम्परा यज्ञ के चारो ओर चक्कर लगा रही है। भगवान महावीर के समय सभी विज्ञ ब्राह्मणगण यजकार्य में जुटे हुए थे। श्रमण भगवान महावीर ने और उनके संघ के अन्य श्रमणों ने 'वास्तविक यज्ञ क्या है ? तथा मच्चा ब्राह्मण-कौन है ?' इम सम्बन्ध में अपना चिन्तन प्रस्तुत किया। जिस यज्ञ में जीवों की विराधना होती है उस यज्ञ का भगवान ने निषेध किया है। जिम में तप और मयम का अनुष्ठान होता है। वह भाव यज्ञ है। ब्राह्मण शब्द की, जो जातिवाचक वन-चका था, यथार्थ व्याख्या प्रस्तुत अध्ययन में की गई है। जातिवाद पर करारी चोट है। मानव जन्म से श्रेष्ठ नहीं, कर्म से श्रेप्ट बनता है। जन्म से ब्राह्मण नहीं, कर्म मे ब्राह्मण होता है। मण्डित होन मात्र से कोई श्रमण नहीं होता / ओंकार का जाप करने मात्र से कोई ब्राह्मण नहीं होता / अरण्य में रहने मात्र में मुनि नहीं होता। दर्भ-वल्कल आदि धारण करने-मात्र से कोई नापस नहीं हो जाता / समभाव से श्रमण होता है। ब्रह्मचर्य के पालन से ब्राह्मण, ज्ञान से मुनि एवं तपस्या से तापस होता है। जिम प्रकार प्रस्तुत अध्ययन में ब्राह्मण की परिभाषा की गई है, उसी प्रकार की परिभाषा धम्मपद में भी प्राप्त होती है। उदाहरण के रूप में प्रस्तुत अध्ययन की कुछ गाथानों के माथ धम्मपद की गाथायों की तुलना करें तसपाणे वियाणेत्ता, संगहेण य थावरे / जो न हिंमद तिविहेणं, तं वयं बम माहणं / / .-(उत्तरा. अ. 25 गा. 22) तुलना कीजिए निधाय दंडं भूतेसु, तसेसु थावरेसु च / यो हन्ति न घातेति, तमहं ब्रमि ब्राह्मण / / -(धम्मपद 26123,) कोहा व जइ वा हासा, लोहा वा जइ वा भया / मुसं न वयई जो उ, तं वयं बम माहणं // -(उत्तरा. अ. 2023) 243. ऋग्वेद--वैदिक संस्कृति का विकास, पृष्ठ 40 [ 73 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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