________________ और वैराग्य आवश्यक है / 234 आचार्य पतंजलि का भी यही अभिमत रहा है / 231 प्रवचन माताएं चौबीसवें अध्ययन का नाम 'समिईयो' है। समवायांग सूत्र में यह नाम प्राप्त है। उत्तराध्ययननियुक्ति में प्रस्तुत अध्ययन का नाम 'प्रवचनमात' या 'प्रवचनमाता' मिलता है। 37 मभ्यगदर्शन और सम्यक ज्ञान को 'प्रवचन' कहा जाता है / उसकी रक्षा हेतु पाँच समितियाँ और तीन गुप्तियाँ माता के सदश हैं / ये प्रवचनमाताएँ चारित्ररूपा है द्वादशांगी में ज्ञान, दर्शन और चारित्र का ही विस्तार से निरूपण है। इसलिये द्वादशांगी प्रवचनमाता का ही विराट रूप है / लौकिक जीवन में माँ की महिमा विश्र न है / वह शिशु के जीवन के मंवर्धन के साथ ही संस्कारों का सिंचन करती है। वैसे ही आध्यात्मिक जीवन में ये प्रवचन-माताएँ जगदम्बा के रूप में हैं। इसलिये भी इन्हें प्रवचनमाता कहा है / 238 प्रसव और ममाना इन दोनों अर्थों में माता शब्द का व्यवहार हुआ है / भगवान् जगत्-पितामह के रूप में है / 136 ग्रात्मा के अनन्त प्राध्यात्मिक-सद्गुणों को विकसित करने वाली ये प्रवचनमाताएँ हैं। ___ प्रतिक्रमण मूत्र के वृत्तिकार आचार्य नमि२४. ने समिति की व्युत्पत्ति करते हुए लिखा है कि प्राणातिपात प्रभति पापों से निवृत्त रहने के लिये प्रशस्त एकाग्रतापूर्वक की जाने वाली ग्रागमोक्त सम्यक प्रवृत्ति समिति है। माधक का अशुभ योगों से सर्वथा निवृत्त होना गुप्ति है / आचार्य उमास्वातिजी ने भी लिखा 41 है-मन, वचन और काय के योगों का जो प्रशस्त निग्रह है, वह गुप्ति है। प्राचार्य शिवार्य ने लिखा है कि जिस योद्धा ने सुदृढ़ कवच धारण कर रखा हो, उस पर तीक्ष्ण बाणों की वर्षा हो तो भी वे तीक्ष्ण बाण उसे बींध नहीं सकते। वैसे ही ममितियों का सम्यक प्रकार से पालन करने वाला श्रमण जीवन के विविध कार्यों में प्रवृत्त होता हुआ पापों से निर्लिप्त रहता है। 242 जो श्रमण पागम के रहस्य को नहीं जानता किन्तु प्रवचनमाता को सम्यक् प्रकार से जानता है, वह स्वयं का भी कल्याण करता है और दूसरों का भी ! श्रमणों के प्राचार का प्रथम और अनिवार्य अंग प्रवचनमाता है, जिस के माध्यम से श्रामण्य धर्म का विशुद्ध रूप से पालन किया जा सकता है। 234. "चंचलं हि मनः कृष्ण ! प्रमाथि बलवत् दृढम् / तस्याहं निग्रहं मन्ये, वायोरिव सुदुष्करम् // " --गीता 634 'अभ्यासेन तु कौन्तेय ! वैराग्येण च गृह्यते / -गीता 635 235. "अभ्याम-वैराग्याभ्यां तन्निरोधः।" -पातंजल योगदर्शन 236. समवायांगमूत्र समवाय 36 237. उत्तराध्ययन नियुक्ति-गाथा 458, 459 238. उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन 24 गाथा-१. 239. नन्दीसूत्र-स्थविरावली गाथा-१ 240. सम्-एकोभावेन, इति:-प्रवृत्तिः समितिः 241. तत्त्वार्थसूत्र अ. 9 मू. 4 242. मूलाराधना 6, 1202 / [72 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org