________________ चौतीसवां अध्ययन : लेश्याध्ययन] [619 [47] मनुष्यों और तिर्यञ्चों को लेश्यानों को स्थिति का यह वर्णन किया है / इससे प्रामे देवों की लेश्याओं की स्थिति का वर्णन करूंगा। 48. दस वाससहस्साई किण्हाए ठिई जहन्निया होइ। पलियमसंखिज्जइमो उक्कोसा होइ किण्हाए / [48] (देवों को) कृष्णलेश्या को जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष है, और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग है / 49. जा किण्हाए ठिई खल उक्कोसा सा उ समयमाभहिया / जहन्नेणं नोलाए पलियमसंखं तु उक्कोसा।। [46] कृष्णलेश्या की जो उत्कृष्ट स्थिति है, उससे एक समय अधिक, नीललेश्या को जघन्य स्थिति है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग है / 50. जा नीलाए ठिई खलु उक्कोसा सा उ समयमभहिया। जहन्नेणं काऊए पलियमसंखं च उक्कोसा // [50] नोललेश्या को जो उत्कृष्ट स्थिति है, उससे एक समय अधिक कापोतलेश्या को जघन्य स्थिति है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग है / 51. तेण परं वोच्छामि तेउलेसा जहा सुरगणाणं / भवणवइ-वाणमन्तर-जोइस-वेमाणियाणं च / / [51] इससे आगे भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों को तेजोलेश्या की स्थिति का निरूपण करूंगा। 52. पलिओवमं जहन्ना उक्कोसा सागरा उ दुण्हऽहिया। पलियमसंखेज्जेणं होई / भागेण तेऊए / / [52] तेजोलेश्या को जघन्य स्थिति एक पल्योपम है, और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम का असंख्यातवां भाग अधिक दो सागर की है / 53. दस वाससहस्साई तेऊए ठिई जहन्निया होइ। दुण्णुदहो पलिप्रोक्म असंखभागं च उक्कोसा / / [53] तेजोलेश्या की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम का असंख्यावाँ भाग अधिक दो सागर है / 54. जा तेऊए ठिई खल उक्कोसा सा उ समयमभहिया। जहन्नेणं पम्हाए दस उ मुत्तहियाइं च उक्कोसा / / [54] तेजोलेश्या को जो उत्कृष्ट स्थिति है, उससे एक समय अधिक पद्मलेश्या को जघन्य स्थिति है, और उत्कृष्ट स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त अधिक दस सागर है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org