________________ 618] [उत्तराध्ययनसूत्र 40. एसा खलु लेसाणं आहेण ठिई उ वग्णिया होई / ___ चउसु वि गईसु एत्तो लेसाण ठिइं तु वोच्छामि / / [40] लेश्याओं की यह स्थिति पौधिक (सामान्य रूप से) वणित की गई है / अब चारों गतियों की अपेक्षा से लेश्याओं की स्थिति का वर्णन करूंगा। 41. दस वाससहस्साई काऊए ठिई जहनिया होइ / तिष्णुदही पलिओवम असंखभागं च उक्कोसा / / [41] कापोतलेश्या की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष है, और जत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागरोपम है। 42. तिष्णुदही पलिय - मसंखभागा जहन्नेण नीलठिई। दस उदही पलिओवम असंखभागं च उक्कोसा // 4i2] नीललेश्या की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागरोपम है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोषम है / 43. दस उदही पलिय--मसंखभागं जहन्निया होइ / तेत्तीससागराई उक्कोसा होइ किण्हाए / [43] कृष्णलेश्या की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम है और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम है। 44. एसा नेरइयाणं लेसाण ठिई उ वणिया होइ। तेण परं बोच्छामि तिरिय-मणुस्साण देवाणं / / [44] यह नैरयिक जीवों की लेश्याओं की स्थिति का वर्णन किया है / इसके आगे तिर्यञ्चों, मनुष्यों और देवों की लेश्या-स्थिति का वर्णन करूंगा।। 45. अन्तोमहत्तमद्धलेसाण ठिई जहिं हिं जाउ। तिरियाण नराणं वा धज्जित्ता केवलं लेसं // [45] केवल शुक्ललेश्या को छोड़ कर मनुष्यों और तिर्यञ्चों को जितनी भी लेश्याएं हैं, उन सबकी जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त है। 46. मुहुत्तद्ध तु जहन्ना उक्कोसा होइ पुवकोडी उ / नवहि वरिसेहि ऊणा नायव्वा सुक्कलेसाए / / [46] शुक्ललेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट स्थिति नौ वर्ष कम एक करोड़ पूर्व, शुक्ललेश्या की जय 47. एसा तिरिय नराणं लेसाण ठिई उ वणिया होइ / तेण परं वोच्छामि लेसाण ठिई उ देवाणं / / Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only