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________________ चौतीसवां अध्ययन : लेश्याध्ययन] [617 विवेचन-एक उत्सर्पिणी और अबसपपिणी कालचक्र वीस कोटाकोटो सागरोपम प्रमाण होता है। ऐसे असंख्यात कालचक्रों के समयों को-सब से छोटे कालांशों की जितनी संख्या हो, उतने ही लेश्याओं के स्थान हैं, अर्थात् विशुद्धि और अशुद्धि को तरतमता को अवस्थाएँ हैं। अथवा एक लोकाकाश के प्रदेश असंख्यात हैं। ऐसे असंख्यात लोकाकाशों की कल्पना की जाए तो उन सब के जितने प्रदेशों की संख्या होगी, उतने ही लेश्याओं के स्थान हैं / यह काल और क्षेत्र की अपेक्षा से लेश्या-स्थानों की संख्या हुई। 6. स्थितिद्वार 34. मुहुत्तद्धं तु जहन्ना तेत्तीसं सागरा मुत्तहिया / उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा किण्हलेसाए / [34] कृष्णलेश्या की स्थिति जघन्य (कम से कम) मुहूर्तार्द्ध (अर्थात्-अन्तर्मुहूर्त) को है और उत्कुष्ट एक मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम को जाननी चाहिए। 35. मुहुत्तद्ध तु जहन्ना दस उदही पलियमसंखभागमम्महिया / उक्कोसा होइ ठिई नायब्वा नोललेसाए / [35] नीललेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम की समझनी चाहिये / 36. मुहुत्तद्धतु जहन्ना तिण्णुदही पलियमसंखभागमभहिया / उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा काउलेसाए / [36] कापोतलेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागरोपम प्रमाण समझनी चाहिये / 37. मुहुत्तद्ध तु जहन्ना दो उदही पलियमसंखभागमभहिया। उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा तेउलेसाए // [37] तेजोलेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहुर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति पत्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम की जाननी चाहिये। 38. मुहत्तद्ध तु जहन्नास होन्ति सागरा मुहुत्तऽहिया। उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा पम्हलेसाए // [38] पद्मलेश्या की जघन्य स्थिति अत्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट स्थिति एक मुहूर्त अधिक दस सागरोपम समझनी चाहिये 39. मुहत्तद्ध तु जहन्ना तेत्तीसं सागरा मुहुत्तहिया / उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा सुक्कलेसाए // [36] शुक्ललेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त को और उत्कृष्ट स्थिति मुहर्त अधिक तेतीस सागरोपम की है। 1. बृहद्वृत्ति, अ. 2, कोष भा. 6, पृ. 690 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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